मंगलवार, 29 नवंबर 2011
काहे इतना स्नेह बरसाते हो
मेरे राम !
काहे इतना स्नेह बरसाते हो
इस अभागी पे
जो ना जाने इसका मोल
उसे काहे दिए जाते हो
में पगली जीवन दे भी न चुका सकूँ
तेरी प्रीत की कीमत अनमोल
ले चल मुझे संग अपने
बना ले मुझे भी अपने संग अपने सा
या मिटा दे इस जीवन
को ,दे अपना क्षणिक दे आवेश
तू ना जाने ,
मेरे मन की थाह
तेरे कदमो के सिवा कोई अब न रही चाह
श्री चरणों में तुम्हारी अनु
में हूँ दासी अपने राम की !
मोहे शपथ
करुणा निधान की
में हूँ दासी अपने राम की ,
में सदा ही पाऊं
इन अखियन में
सदा निश्छल धवल छबी
अपने राम की
रोक सके न संसार का कोई मोह
मेरी आत्मा का स्नेह बंधन
जो मिले मेरी आत्मा
अपने राम के चरणों से
तो मे पाऊं आत्मा का सुख अपार
मेरे राम !
करुणा निधान
मोहे शपथ अपने राम
में सदा करू हर भोर चरण प्रणाम
तोरे नाम
मेरे राम !
श्री चरणों में अनुभूति
रविवार, 27 नवंबर 2011
Rajnigandha Phool Tumhare (Rajnigandha - 1974) HQ
रजनीगन्धा फुल तुम्हारे इस जीवन
श्री चरणों में तुम्हारी अनु
शुक्रवार, 25 नवंबर 2011
नीर भरे नयन करूँ,
क्या में तुमसे क्या कहूँ सजन
मेरा मासूम मन कभी न समझ सका,
दुनिया की रीत
ओ सजन !
वो तो पत्थर की मूरत को भी मानअपना
करता रहा सदा ,
इन अश्रुओं से चरण वंदन
खोट कही मेरे साधना मे ही
भक्ति में ,तपस्या मैं ही
जो पा न सकी अपना प्रियतम
क्या में तुमसे क्या कहूँ सजन
मेरा मासूम मन कभी न समझ सका,
दुनिया की रीत
ओ सजन !
वो तो पत्थर की मूरत को भी मानअपना
करता रहा सदा ,
इन अश्रुओं से चरण वंदन
खोट कही मेरे साधना मे ही
भक्ति में ,तपस्या मैं ही
जो पा न सकी अपना प्रियतम
सब कुछ हैं ,पर कुछ भी नहीं
न पायल ,चूड़ी ,सिंदूर सजन
खनकती चूड़ियों ही में उसके पास
भटकती रही ले मन की प्यास
वो मुझे ठुकराता रहा ,
मासूम मन जान न सका ये बात
जान नहीं सकी अपने और उसके बीच के
बड़े धरती -आकाश के अंतर की बात
मेरा मासूम मन बस इन नीर भरे नैनों से उसे
पूजता ही रहा ,दुआए देता ही रहा
पर वो मुझे खोजता ही रहा
खोफ ,डर और मुसीबत और
न जाने किन -किन
लोगो के साथ होने की बात
न में इस दुनिया में थी, प्रियतम
न तेरी दुनिया, मुझे समझ आई
इसीलिए तो कहती हूँ कृष्णा !
मुझे भी दे इन सांसों से छुटकारा
ले चल अपने साथ !
ले चल अपने साथ ,हां अब तो ले चल,
सुन तो ले एक बार बस एक बार ,कुछ नहीं मांगूंगी में दोबार
अब तो सुन ले या कुछ और बचा हैं
तेरा मुझको देना इन आँखों के नाम
सुन ले न ,अब तो सुन ले हां अब तो सुन ले सुन तो ले एक बार
गुरुवार, 24 नवंबर 2011
पुकारती हैं तुझे मेरी आहें
पुकारती हैं तुझे मेरी आहें
तो बहते हैं अश्क, इन आँखों से
तेरे बिना नहीं हैं जीवन का कोई साथ
जिन्दगी काश बया हो पाती तो
में अश्को से बया कर देती अपनी आहो का दर्द
जो मुस्कुराहट बन के सजा करता था मेरे लबो पे
वो आज जखम बन के इन आखो से बहा करता हैं
मुस्कुराहट न सही वो ज़िंदा हैं इन आसुओं में
मेरे रब तेरी ये मेहर ही मुझपे क्या कम हैं ......
अनुभूति
मेरे पालनहार !
मेरे कृष्णा !
तुने तोड़ दी ,
बिखेर दी हैं मेरी तपस्या के मोतियन की माला
मेने जोड़ा एक -एक मनका
अपनी आत्मा के असीम स्नेह विशवास से
.और तुमने एक ही पल मे अपने आवेश मे बिखेर डाला |
सारा संसार एक तरफ तू मेरा कृष्णा एक तरफ
दुनिया मुझपे तोहमत लगाये मेने सह ली
तेरी तोहमत मुझे असीम वेदना दे जाएँ
ये क्या हैं मेरे माधव !
मुझे ना समझ आये ,
तेरी बाते तू ही जाने
मेने कुछ नहीं कह पाऊं
मेने सिर्फ मागी हैं तेरे चरणों की सेवा
और कुछ मे नहीं चाहूँ
मे जानू मेरी अखिया कभी ना तोहे भाये
इसीलिए तू मोहे ये पीड दे जाएँ
जो तू पड़े सके मेरे असुअन को बोली
तो मेरी पीड समझ जाए
धन्य हूँ मैं
जीने को तुने कुछ तो मेरे नाम किया हैं
ऐसा कोन दूजा होगा
जिसके क्षण-क्षण पे तुमने ये वेदना का सागर दान किया हैं
हां , मे अब इसी मे डूब जाउंगी
हां अब तो करले दे म्रत्यु
अपने श्री चरणों मे स्वीकार
तेरी बड़ी कृपा होगी .!
मेरे पालनहार !
तेरे पगली अनुभूति
बुधवार, 23 नवंबर 2011
मुस्कुराते हो ना सदा ही मुझे रोते देख ..
मेरे माधव !
मुस्कुराते हो ना सदा ही मुझे रोते देख ..
मेरी आंहो मे दर्द
और आँखों मे देके रात भर का ये नीर
देके मुझे मुस्काओ ,
तो हंस के स्वीकार हैं
जीवन के सारे दर्द
मेरे कृष्णा !
सदा मेरे अंतस को चीर तुम मुस्काओं
ये प्रीत की रीत अनोखी तुम ही निभाओं
जो तुम संग बाधी आत्मा की ये डोर
तो केसे तुम्हारी बन्धनी तुम कुछ कह जाएँ
मेरे माधव !
मुझे तेरी एक मुस्कुराहट को ये सब स्वीकार
ये नीर भरे ,सजल नयन करते हैं
सदा की तरह ही तुम्हारे चरणों मे
आत्मीय प्रणाम
श्री चरणों मे तुम्हारी अनुभूति
सोमवार, 21 नवंबर 2011
एक दिन मैं तुझसे आ मिलूंगी ,मेरे कृष्णा !
मेरे कृष्णा !
तेरी आत्मा की धवल चांदनी से सजी हैं
तनहा जिंदगी की राहे
केसी रहमत हैं
ये तेरे स्नेह की जो एक बूंद मे ही मुझे भिगो देती हैं
समन्दर की तरह
हां समन्दर हो तुम मेरे स्नेह का
बस नहीं हैं जिंदगी के हालातों पे
मुझे नहीं पाता तुझे मैं कंहा खोजू ?
इतना जानती हूँ कृष्णा !
मेरी तडपती आत्मा एक दिन तेरे कदमो से
लिपट के आंसू बहा रही होगी .................
बस ,इसीलिए जी रही हूँ
मेरे कृष्णा !
श्री चरणों मे तुम्हारी अनु
रविवार, 20 नवंबर 2011
गुरुवार, 17 नवंबर 2011
ताबीर
मेरी कोई फ़रियाद
उसके कानो तक जाती ही नहीं
मेरी रूह की बेबस सदाएं ,
पत्थरों से टकरा कर मुझ तक ही लौट आती हैं |
वो धड़कता हैं
मेरी रूह मे ,सांसो मे
पर मेरी कोई धड़कन उस तक जाती ही नहीं |
हर घड़ी ,हर क्षण
हर घड़ी ,हर क्षण
वो मुझमे उतरता हैं इबादत की तरह ,
पर मेरी कोई इबादत उसके किसी क्षण तक जाती नहीं |
मेरा हर खवाब ,हकीकत ,
चाहत ,इबादत और हर रिश्ता हैं वो ,
जानता हैं वो,
पर उसकी कोई ताबीर
मुझतक आती ही नहीं |
अनुभूति
बुधवार, 16 नवंबर 2011
मुझे स्वीकार अपने बैकुंठ
मेरे कृष्णा !
हार गयी हैं तेरा इतंजार करती दर्द करती मेरी आँखे
हर आह का दर्द मेरी सांसो पे भारी
मे नहीं जी पाऊं अब
कृष्णा !
अब सह नहीं पाऊं दुनिया की बतिया सारी
मुझे नहीं निभती कोई प्रीत न दुनिया की रीत मुझे होके ख़ाक अब मिट जाने दे
मेरे माधव !
क्षमा कर में नहीं लायक तेरी प्रीत के
,न ही मेरी कोई भक्ति अपार ,मुझे स्वीकार अपने बैकुंठ
अपने श्री चरणों की सेवा में
अनुभूति
मुझे मुक्ति दो माधव !
मेरे कृष्णा !
रात करूँ में तुझसे बतियाँ हजार ,
जिनका कोई न अंत न कोई आधार ,
तुम हो मेरे चारों और पर हो नहीं कभी
केसी हैं ये प्रीत की रतियाँ सारी !
हर भोर ले आँखों में पानी में फिर भी,
करती जाऊं
तुझसे ही लडती जाऊं ,,,,,,,,,,,,,
मरती जाऊं मिटती जाऊं
अपना वचन निभाती में जीती जाऊं
ओ निर्मोही !
हारने लगी हूँ में
अब नहीं निभे कोई वचन
कर लुंगी में किसी दुसरे जनम से सारे कर्म
मुझे मुक्ति दो माधव !
मुक्ति दो !
मुक्त कर, स्वीकार करों
मेरी आत्मा का नमन |
श्री चरणों में तुम्हारी अनु
मंगलवार, 15 नवंबर 2011
Hum Tere Pyar Main Sara Alam Kho Baithe-Dil Ek Mandir
मेरे ठाकुर !
मेरी प्रीत तुझसे ही .ये सांसे तुझसे ही
और कुछ ना जानू मे दुनिया की रीत
जो निभा ना सकू तुझसे अपनी प्रीत
तो मेरी इन सासों मे
मेरे राम नहीं
मेरे राम बसे हैं मुझमे मेरी आत्मा बनकर
श्री चरणों मे अनुभूति
मेरी प्रीत तुझसे ही .ये सांसे तुझसे ही
और कुछ ना जानू मे दुनिया की रीत
जो निभा ना सकू तुझसे अपनी प्रीत
तो मेरी इन सासों मे
मेरे राम नहीं
मेरे राम बसे हैं मुझमे मेरी आत्मा बनकर
श्री चरणों मे अनुभूति
सोमवार, 14 नवंबर 2011
Kanha Kanha tum sang preet na todungi 18 sept 09
अंतस छूता ये भाव
मेरे कृष्णा !
मेरी सांसो मे बसा हैं सदा मे तुम्हारे ही चरणों मे रहूँ मेरे श्याम !
मैं तो तेरी ही चाकर हूँ श्याम !
मेरे कृष्णा!
कोई भोर नहीं ऐसी जो मैं,
तुझसे लड़ते -लड़ते ,
रोते -रोते न जागू...........
तेरा नाम लेते -लेते दुनिया मुस्काए और मैं रोती ही जाऊं
तुम ही तो कहते थे सब कुछ तुम पे छोड दू ,,,,,
छोड दी थी हर सांस ,हर फेसला ,ये जीवन तुम्हारे चरणों मे ...
और तुम मुझे यूँ रोता छोड गए हो ......
मेरी प्रीत काहे तुम पहचान न सके !
एक ही सच्ची आत्मा ,परम पुरुष का भाव
मेरी आत्मा मे मेने पाया था .........
जो इन चार दीवारों मे रोते -रोते ही मिट जाना
तुम्हरा फेसला तो मुझे हंस के स्वीकार ,
मेने तो माँगा था सिर्फ
एक बार तेरी चरण धूलि का अधिकार ...............
मुझे ताना देते हैं दुनिया के लोग मीरा नाम बुलाते हैं
उन्हें नहीं पता मेरी आत्मा का कितना बड़ा उपहास वो कर जाते हैं
न मैं मीरा की तरह छोड पायी ये चोबारे ................
न ही देख पायी एक झलक प्यारी
जिस दिन मेरा श्याम !
मेरे सामने आएगा
उसकी पलकों के झुकने -गिरने से ,
मेरे मरने जीने का फेसला हो जाएगा...............
उसकी ही हुकूमत का अंदाजा उसे नहीं तो मे क्या करूँ ?
मे बस जी रही हूँ ले कर तेरा नाम मेरे माधव !
इस संसार से मुझे नहीं कोई काम ,
मुझे नहीं करना किसी की चाकरी
मैं तो तेरी ही चाकर हूँ श्याम !
तुम्हारे श्री चरणों मे करती हैं
तुम्हारी अनु अपनी आत्मा के रोम -रोम से
सदा अश्रु पूरित प्रणाम |
रविवार, 13 नवंबर 2011
Bhajans from Meerabai Serial Part 1
मेरी रूह तडपती हैं मेरे मनमोहना !
मेरी आँखों से गिरता ये पानी तुम्हारे चरण पखारता हैं
मेरे माधव !
तुम ही मेरे जीवन का यथार्थ सत्य ,
कुछ पल ही सही अमिट आलोकिक स्नेह अपनत्व देने वाले
तेरे ही चरणों मे करती हैं ये पगली
इन अश्रुओं से इस भोर का आत्मीय नमन ...........................
स्वीकार करो मेरे गिरधर ,,,,,,,,,
ये आहें आत्मा की तुम ही सुन सको सुन लो प्रियतम ...........
तेरे विरह मे यूँ ही तिल -तिल मिट जायेगी ये पगली .......
श्री चरणों मे तुम्हारी अनु .....
शनिवार, 12 नवंबर 2011
बहुत निर्दयो हो तुम
बहुत निर्दयो हो तुम
मेरे कृष्णा !
अपार स्नेह भी देते हो ,
और अपने ही जलने का आभास भी ..........
जो तुम जलो इस स्नेह की राह
तो मे तिल -तिल जल मिट ही जाऊं
तुम मेरा. जीवन मेरी साधना
मेरी शक्ति ...........
तुम ही तो हो मेरे करुणाकर !
जिसने मुझे दीप बनाया
तुमने ही मुझे अपने अंतस से जलना सिखाया .......
इतना जानती हूँ हर राह ,हर सांस संग रही हूँ
हर विपदा के आगे खड़ी हूँ ....
मेरा जीवन तुझे ही अर्पण मेरे करुणाकर .....................
श्री चरणों मे अनुभूति
एक भागवतअंश मेरी आत्मा का
हे मधुसूदन !
मेरी आत्मा मे स्वयं उतर कर
मेरे ही हर सवाल का जवाब देते हो ,,,,,,,,,,
मेरे कृष्णा !
मे भीगी हूँ अपने रोम -रोम से देख
राजा अमरीष पे तुम्हारी कृपा अपरम्पार
.हे जगदिश्वर !
जिसके साथ हो तुम्हरा सुदर्शन
ये संसार क्या उसका कुछ कर पायेगा ......
हे मेरे मोहेश्वर !
मुझे चेन हैं सिर्फ तेरे चरणों मे
मुझे मेरा मार्ग दिखाओ ,
इन झूटे रिश्तों से मुझे भी मुक्ति का मार्ग दिखाओ ........
जीवन भर मेरी आत्मा डूबी रहे तेरे भक्ति सागर मे
इतना ही मुझे वर दो ,,,,,,,
धन्य हू मे तेरे कदमो मे बैठ जो कर सकू मे
ये भागवत आराधन .....
हे कृष्णा !
मुझे ले चल अपने संग
अपने मधु बन ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
ताकि कर सकू मे जीवन भर चेन से
बेखोफ तुम्हरा आत्मीय स्मरण ...........
मेरी आँखों से तुम्हें देख नीर नहीं
परम आन्नद का अमृत बहता हैं
जो मे डूबू तेरे सागर मे तो कभी न मे तर पाऊं .......................
मेरे मुरली मनोहर !
बस अमरीष की तरह ही इस आत्मा पे तेरा आशीष पाऊं .........
श्री चरणों मे तुम्हारी बावरी ,,,,
अनुभूति
शुक्रवार, 11 नवंबर 2011
इन्तजार
तेरे इन्तजार मे ये शब क्या ये जिंदगी यूँ ही कट जायेगी ,
मे मरती ही रहूंगी और तेरे सामने मेरी तक़दीर हँसती जायेगी .......
तुम खुदा हो ,फरिश्ते हो जो भी हो
पर तुम्हारे बिन ये जिंदगी न जी जायेगी
मरना हैं रोज ,हर आह ,
हर अहसास ,तन से हो या आत्मा से
एक दिन तो मिटना ही हैं
फिर मे क्यों न मिट जाऊं तबाही के रास्तो पे ..........
जो न हो सकी मे तेरी तो अपनी होके कहा जी पाऊँगी
जानती हूँ जिस रस्ते पे बड़ी हूँ वो क्या कहा जाता हैं
नहीं मालुम मुझे पर इतना पता हैं वफ़ा का इनाम क्या दिया जाता हैं .........
आप से बेहतर किसी ने मुझे इनाम नहीं बख्शा ,,,,,,,,,,,,,,,
.
अनु
मे मरती ही रहूंगी और तेरे सामने मेरी तक़दीर हँसती जायेगी .......
तुम खुदा हो ,फरिश्ते हो जो भी हो
पर तुम्हारे बिन ये जिंदगी न जी जायेगी
मरना हैं रोज ,हर आह ,
हर अहसास ,तन से हो या आत्मा से
एक दिन तो मिटना ही हैं
फिर मे क्यों न मिट जाऊं तबाही के रास्तो पे ..........
जो न हो सकी मे तेरी तो अपनी होके कहा जी पाऊँगी
जानती हूँ जिस रस्ते पे बड़ी हूँ वो क्या कहा जाता हैं
नहीं मालुम मुझे पर इतना पता हैं वफ़ा का इनाम क्या दिया जाता हैं .........
आप से बेहतर किसी ने मुझे इनाम नहीं बख्शा ,,,,,,,,,,,,,,,
.
अनु
Zindagi Bhar Nahi Bhoolegi (Male)
जिसने भी ये गीत लिखा हैं
शायद खूबसूरती को सांसो से पढ़ना सीख ही लिया होगा
सुनकर ही ऐसा लगता हैं मानो
किसी ने रूह के जस्बातो को शब्दों मे उतार दिया हैं ,
जेसे हर शब्द जीने को मजबूर करता हैं कहता हैं जिंदगी को तुम एक बार फिर जी लो ..........अनुभूति
Zindagi Bhar Nahi Bhoolegi (Male)
जिसने भी ये गीत लिखा हैं
शायद खूबसूरती को सांसो से पढ़ना सीख ही लिया होगा
सुनकर ही ऐसा लगता हैं मानो
किसी ने रूह के जस्बातो को शब्दों मे उतार दिया हैं ,
जेसे हर शब्द जीने को मजबूर करता हैं कहता हैं जिंदगी को तुम एक बार फिर जी लो ..........अनुभूति
तेरी प्रीत की रित हैं अनोखी
मेरे कृष्णा !
तेरी प्रीत की रित हैं अनोखी
जो तेरा ,वो दूर खडा हैं तुझसे कोसो
जगत ,दुनिया पा जाएँ तेरे चरणों का सुख
और में बावरी तरसा किये हूँ तुझे
सुनने को ,बतियाने को
केसी सजा हैं प्रीत की अनोखी !
तिल-तिल का विरह में न पाऊं
आस ये ही अब में इस संसार से मुक्ति पाऊं
क्या करू चाह तेरे दर्शन की मन में
जब तू सारे संसार की कठोरता
मेरे लिए ही ओड़े बैठा हैं
दे दे मोक्ष मुझे अपने चरणों में ........
श्री चरणों में अनु
तुम्हरा आदेश
मेरे कृष्णा !
संसार के अधिपति तुम तो भूले होगे
कभी मुझे कही गयी अपनी ही बात
तुमने मुझे आदेश किया था
पयोव्रत संकल्प का
ले तुम्हरे चरणों का आशीष मे शुरू करू
ये संकल्प साकार |
तेरी रहमतों का यूँ असर मेरे चेहरे दिखता हैं ,
जेसे हर सांस मे तु मेरे साथ जीता हैं
मे मरती हूँ
मिटती हूँ
रोती हूँ और तुझसे ही झगडती हूँ
अगर तुम न हो मेरी सांसो मे तो, एक पल मे मर जाऊं
मैं जानती हूँ तुम हो इन साँसों मे, इसीलिए मे जी पाऊं
अपनी अनु को,
अपने चरणों के आशीष से यूँ ही सम्हाले रखना
एक दिन आएगा जिस दिन मैं . तुझमे ही विलीन हो जाउंगी
मेरे कुमकुम की तरह अक्ष्णु हैं मेरा विशवास
सदा तुम्हारे कदमो से यूँ ही लिपटी रहूँ मे
ये ही कामना हैं इस जीवन
हो मेरे संकल्प पुरे सारे इतना देना मुझे आशीष
रख इस मस्तक पे हाथ
तुमने ही हाथ थाम लड़ना सिखाया हैं
अपनत्व का दिया हैं स्नेह संसार
बस तुम इन साँसों से दूर मत जाना
मे तुम्हारी ही हूँ सदा रहूंगी इस जीवन बस
हाथो को मेरे यूँ ही अपने हाथो मे थामे रखना
मेरे माधव !
मेरे कृष्णा !
मेरे राम !
तुम्हरा आदेश
श्री चरणों मे तुम्हारी अनु
गुरुवार, 10 नवंबर 2011
पुंसवन व्रत
पुंसवन व्रत
मेरे कृष्णा !
तुम्हारे आशीष बिन मेने कब कुछ किया हैं .
एक लंबे इन्तजार के बाद मार्गशीर्ष का ये दिन आया हैं ,
दीजो अपने चरणों का आशीष ,
तो मे एक बार फिर दोहरा सकू ये संकल्प ,
आत्मा की प्यास तुम्हरे रूप मे पाऊं मे एक सन्यासी
मेरे प्रभु !
साथ मेरे कोई नहीं तुम ही खड़े हो निभाने
मे अपना धर्म एक हाथ निभा लू
मे लक्ष्मी तो विष्णु रूप तुम्हे ही पाऊं
हां ये वर दो और पूरा करो मेरी आत्मा की प्यास
मेरे कोस्तुभ स्वामी !
मे अपने सत्य और अक्ष्णु विशवास के साथ
तुम्हे अपनी आत्मा का अधिपति माने आज भी वही खड़ी हूँ
दीजियो अपनी लक्ष्मी का साथ ,
मेरे नारायण !
स्वप्न जब हैं दोनों का एक सन्यासी
तो फिर काहे की दुरी मेरे स्वामी !
तुम जानो कृष्णा !
मेरी आत्मा की बतिया सारी
दीजो इन व्रती दिनों मे साथ
मे रहूंगी सदा तुम्हरे चरणों की आभारी
रूह की प्यास मेने आज तुमसे कह डाली
जो स्वार्थ नहीं समर्पण मेरा
पूर्णता मेरी
तुम बिन कोई नहीं जो दे सके इस आत्मा को
स्वप्न सुनहरा ............................
श्री चरणों मे तुम्हारी अनु
Anubhav 1971 - Mujhe Jaan Na Kaho Meri Jaan - Geeta Dutt
मेरे कृष्णा !
मेरी सांसे .मेरा जीवन
सब कुछ तेरे नाम पे न जाने कब से गिरवी पडा हैं
कभी तो श्याम इस प्यासी आत्मा को अपने कदमो से लगा लो
समझो इन सांसो से उहती रूह की आह भी
श्री चरणों मे तुम्हारी अनु
Anubhav 1971 - Mujhe Jaan Na Kaho Meri Jaan - Geeta Dutt
मेरे कृष्णा !
मेरी सांसे .मेरा जीवन
सब कुछ तेरे नाम पे न जाने कब से गिरवी पडा हैं
कभी तो श्याम इस प्यासी आत्मा को अपने कदमो से लगा लो
समझो इन सांसो से उहती रूह की आह भी
श्री चरणों मे तुम्हारी अनु
मेरे चाँद !
मेरे चाँद !
कभी तो हो के तेरे पहलु में आके में जी भर के रो सकू .
कह सकू तुझसे कुछ ,समझा सकू रूह की तड़प
पर तुझसे अपनी खिड़की से
बतियाते -बतियाते में भूल ही जाती हूँ
तुम तो दूर खड़े हो उस आसमान पे
और में तो तेरी चांदनी को तरसता एक फुल
लगता हैं तेरे इन्तजार में ,
सदिया युही बीत जायेंगी
रोते -रोते
और तू खामोश उस आसमान से
अपने ही गुरुर में इतराता होगा
सोचती हूँ कहूँ तुझसे की एक तड़प तुझे भी ऐसी हो जिसकी आह,
किसी दिल की दीवारों से न टकराए
दिल तो कह भी दे ,
रूह को ये मजूर भी नहीं
मरना ,मिटना ही जिन्दगी हैं
खता कह लो या गुनाह ये तो मेने किया हैं
इसलिए हँस के सब कुछ अपने नाम कर लिया हैं |
हां फिर भी ये पगली
अपने खामोश चाँद से आज भी घंटो किया करती हैं बाते
और तेरी चांदनी से भिगोती रहती हैं तकिया
और कहती हैं तुमसे
कोई दिन तो हो ऐसा
की में तेरे धवल पहलु में आके रो सकूँ |
श्री चरणों में तुम्हारी अनु
मेरे कृष्णा !
जब भी अपने को आईने मे खड़ा पाती हूँ
,किसी कोने से अपनी ही आत्मा का अंतस छू जाती हूँ ,
जब हो तुम मेरी सासों के मालिक ,
मेरे निगेहबा
तो काहे इतना तड़पाते हो काहे !
अब दो इन सजाओं का अंत कर दो
कुछ पल ही सही साकार स्वीकार करो
मेरे कृष्णा !
अपने श्री चरणों मे ये धुल
तुम क्या जानो हर सांस कितनी तडपती हैं
तुम्हरा चाँद आज अंधरो से घिरा पड़ा हैं
लेकिन आत्मा के रोम -रोम के अधिपति हो तुम ही
मर सकना मंजूर हैं इन सांसो से तुझसे दूर जाना नहीं
मुझे एक पल को ही सही
जीना हैं तेरे कदमो मे
श्री चरणों मे तुम्हारी अनु
सोमवार, 7 नवंबर 2011
jeevan se bhari
जीवन की सारी खूबसूरती को जितने सुंदर शब्दों मे डाला हैं
वो अनुपम हैं शयद ही कोई किसी की खबसूरती का
ऐसा हसीं दिल को छु जाने वाला वर्णन कर सकता हैं
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,श्री चरणों मे आप की अनु
रविवार, 6 नवंबर 2011
एक ही स्वप्न इन आँखों का
मेरे श्याम !
तुम तो कह दो अपने अधरों पे धर मुरलिया.
दिल की हर बात,
और में बावरी सुन -सुन ही खामोश,नीर बहाती ही रह जाऊं ,
एक ही स्वप्न इन आँखों का
उसके लिए हर सांस मरती जाऊं
तुम तो युग दृष्टा तुम जानो इन सांसो की बात ,विचलित होता हैं मन ,
तुम्हरा दिया ये नव सृजन
तुम्हारे कदमो में न सोप दूँ जब तक
ये तन ,मन आत्मा केसे में जी जाऊं !
संसार निभाते हो तुम
में नहीं जी पाऊं
तिल-तिल मरने की सजा में तुमसे पाऊं
केसा संसार तुमने नाम लिखा हैं
कुछ पल की चरण सेवा का मेरा स्वप्न तुमने
छिना हैं फिर में ज़िंदा हूँ
एक आस में की कभी तो कही होगा
तुम्हारे चरणों में मेरा मोक्ष
समझ आती ये दुनिया
तो इस आत्मा को बिना समझे
तुम्हारी दासी न होने देती
हां ,अब जो सोप दी हैं आत्मा
तुम्हे मेरे मुरली मनोहर !
तो हर सांस की तड़प हो या
रोज का मरना
ये मेरी नियति हैं !
मेरा मिटना हैं तुम्हारी ख़ुशी तो
तो में मिट जाउंगी
हां एक बात तो बता दो मेरे कृष्णा !
कब तक तुमसे विरह की ये सजा पाऊँगी |
तन समझा लूँ पर इस आत्मा को कित समजाऊं
ये तो मान बेठी हैं तुम्हे ही अपने प्राण
बोलो मेरे श्याम !
इस तुच्छ संसार जो न पाऊं में तेरे चरणों की सेवा
को क्यों जियूं में ?
तुम तो संसार के अधिकारी नो
मेरे तो तेरे चरणों की सेवा के
कुछ पल ही आभारी
न पाऊं तो ये नित दिन बढता योवन ,तन मन किस काम का
ये में अपने ही अंतस को तिल -तिल मर अपने ही को खाक बनाऊं
जो पाप हैं मेरा स्नेह तुझसे तो
सजा मेरी यही है में तुझ बिन यूँ ही मरती जाऊं !
तुमको कभी न मेरी पीड़ का अहसास हुआ हैं
तो बोलो किसको समझा सकूँ
तुमसे मेरी आत्मा की ये प्रीत अनोखी
मेरा स्वप्न तुमने अमर कर दिया लेकिन मेरी आत्मा में
सब कुछ जाग्रत कर दिया
मुझसे नहीं सही जाती तेरी अब
कोई कठोरता .
अब मुझे दे दे तू मुक्ति का आशीष.
श्री चरणों में तुम्हारी अनु
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
तेरी तलाश
निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................
-
ये कविता किसी बहुत बड़े दार्शनिक या विद्वान के लिए नही है | ये कविता है घर-घर जाकर काम करने वाली एक साधरण सी लड़की हिना के लिए | तुम्...
-
गोकुल के घनश्याम मीरा के बनवारी हर रूप में तुहारी छवि अति प्यारी मुरली बजाके रास -रचाए | और कह ग्वालों से पट तो गै रानी अरे कान्हा , मी...