मेरे कृष्णा !
रात करूँ में तुझसे बतियाँ हजार ,
जिनका कोई न अंत न कोई आधार ,
तुम हो मेरे चारों और पर हो नहीं कभी
केसी हैं ये प्रीत की रतियाँ सारी !
हर भोर ले आँखों में पानी में फिर भी,
करती जाऊं
तुझसे ही लडती जाऊं ,,,,,,,,,,,,,
मरती जाऊं मिटती जाऊं
अपना वचन निभाती में जीती जाऊं
ओ निर्मोही !
हारने लगी हूँ में
अब नहीं निभे कोई वचन
कर लुंगी में किसी दुसरे जनम से सारे कर्म
मुझे मुक्ति दो माधव !
मुक्ति दो !
मुक्त कर, स्वीकार करों
मेरी आत्मा का नमन |
श्री चरणों में तुम्हारी अनु
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