कभी खुली हवा सी बहती हूँ मै ,तो कभी अपने को हजारो बेडियो मै बंधा पाती हूँ|
सोचती हूँ तोड़ सारी बेडियो को मै ,निकल जाउ अनजान किसी डगर पे
पर अहसानों के तले दबा है जीवन ना जाने कितने तुम्हारे राम|
हर पल अंधड़ सा बह रहा है तन मन मै जीवन तुम्हारे नाम से
मोह ,प्यास ,बैर ,प्रीति सब कुछ दूर जारहा इस आत्मा से
भीड़ से शून्य की और क्यों बह रहा जीवन तुम ही बता दो राम
सोचती हूँ कही कायर तो नहीं ?
फिर क्यों आत्मा खीच रही विरानो को .]
जीवन के हर मोड़ पे मुक्ति का मार्ग बताने यु ही चले आना मेरे राम |