बुधवार, 8 जून 2011

ये जीवन तुझको अर्पण ,मेरे कृष्णा !


मेरे कृष्णा !
मेरे मीत !
ये जीवन तुझको अर्पण
मुरलीवाले!
तुम चाहों तो,
मुरली बना के अधरों से लगा लो ,
चाहे तो आत्मा में बसा के,
गीता का ज्ञान बना दो ,
रही हैं इस संसार में ये काया ,
इसको तो जीना ही होगा न
आत्मा तो ना जाने कब से,
सत्य पे अर्पित पड़ी हैं
मेरे कोस्तुभ धारी !
तुम्हारे पवित्र स्नेह में इतनी क्षमता
जो धुल को भी , चन्दन बना दे |
में रस्ते का पत्त्थर प्रभु ,
मुझे बस दुनिया की ठोकरों से बचा ले |


अनुभूति



में प्रतीक्षा रत हूँ तुम्हारे लिए मेरे कोस्तुभ धारी !

कृष्णा!
मेरे प्रभु !
मेरे कोस्तुभधारी ,
मेरे राम !
सब कुछ तेरी शरण
चिंतित हैं मन कित जाऊं .
कोनसा पथ में पाऊं ,
कोई पथ नहीं. न कोई उजाला 
फिर भी निर्णय अडिग हैं मेरा ,
खोफ और डर समाया हैं मन में , 
प्रभु , तेरे सिवा किसे जानू ,
मेरी आत्मा के स्वामी तुम, 
तुम अन्तर्यामी , तुम सब जानो कान्हा !
और नहीं कोई बंधू , सखा ,भ्राता मेरा
इस दुनिया में क्षण-क्षण घूम रहे
कितने आदमखोर में किसे जानू ,
समझ नहीं दुनिया की फिर भी
कान्हा तेरे  विशवास पे ये सब त्यागु |
और कोई याचना नहीं मुझे ,
संघर्ष में करुँगी ,बस मार्ग तुम तय कर दो ,
जीवन का जब नव सृजन दिया हैं
तो पथ भी तुम तय कर दो बस , 
धन , संबध की चाह नहीं तुमसे कान्हा जी ,
मुझे खुद भी खबर नहीं क्या करूंगी ,कँहा बसुंगी ?
जो समय चाहेगा वो करुँगी ,
किसको पुकारू इन अंधेरो में ,
मेरा राम का अक्ष्णु विशवास 
भी कही घिरा पडा हैं मन के संदेह के घेरों से |
में ना जानू राम! आयेंगे या कोस्तुभ धारी मेरे !
में तो प्रतीक्षा ही कर सकती हूँ अब 
कह -कह के पुकार -पुकार के,
कान्हा में तो हार गयी तुझे भी पुकार के
आत्मा खड़ी हैं विशवास रख ,कहती हैं समझाती आई हूँ 
"जितना विशवास राम पे उतना अक्ष्णु विशवास तू रख "
विश्वास पे नहीं संदेह मुझे 
कही ये खोखले शब्द न हो मन यु डराए ,
आत्मा हैं की जीने की रट लगाये जाए |
कान्हा जी !
केसा नया रूप रोज दिखाओ मुझे 
कभी तो निकल इन छदम रूपों से
अपने पुराने वास्तिक स्नेह मयी रूप में आओ
आत्मा समझ न सके ये रूप बनावटी सारे 
वो तो मिटी जाए बस अपने सीधेश्याम सलोने पे |
जीवन भर डोली हूँ कभी न कोई निर्णय सकी हूँ 
ये अब बदलेगा नहीं |
कान्हा !,तुम्हे पुकारू 
मेरे कोस्तुभ धारी !
कित हो कँहा हो , अब मार्ग दिखाओ मुझे भी|
सारे संसार को गीता ज्ञान देने वाले कोस्तुभ्धारी !
संसार को मार्ग देने वाला मुझसे सी खफा बेठा क्यों हैं ?
पर मेरे मन प्रभु तेरे ही विशवास का दिया जलाएं क्यों बेठा हैं !
नहीं खफा हो तो छोड़ बैकुंठ कुछ देर ही
चले आओ , में प्रतीक्षा रत हूँ तुम्हारे लिए
मेरे कोस्तुभ धारी !
चले आओ


आप के श्री चरणों में एक पुकार मेरे कान्हा जी !

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................