ना भूख हैं इस तन को ,
ना नींद ,न मुस्कुराहट ,न गम
ना प्यास हाँ इस तन को
कोई अभिलाषा नहीं ,
अपने को यूँ तिल -तिल जलाना ही नव- सृजन हैं
सबको माफ़ करदिया हैं मेने
कोई अच्छा ,नहीं कोई बुरा नहीं
न कोई अपना हैं , न पराया
न स्नेह , न अलगाव
अब तो बस जो कुछ हैं वो हैं
मेरा मौन समर्पण
प्रभु तुम और में आमने सामने हैं
अपने भाग्य के सत्य को स्वीकार
आत्मा ने कर दिया हैं ये आत्म विदोह ,
पल - पल अपने को जलाना
और खुश रहना
असीम ख़ुशी देता हैं मुझे
मेरे राम,
मेरी आत्मा
तुम्हारी आँखों का बड़े साहस
के साथ करके सामना ,
अश्रु पूरित मुस्कुराहटो से कहती हैं
प्रभु ,
अब करो सामना मेरे विद्रोह का
देखती हूँ कब तक यूँ ही मुस्कुराते
देख सकोगे मेरी और |
में चाहती हूँ तुम्हारी पत्थर की मूरत,
भी रो पड़े देख ये आत्मा विद्रोह
नहीं करुँगी आत्म ह्त्या
स्वीकार नहीं प्रभु तेरे कष्टों से
एक पल में भागने का ये सुख भी मुझे
में इतना सहूंगी इतना सहूंगी
की तुमको खुद आना होगा
मुझे अपने चरणों मे
स्वीकार कर कहना होगा
खत्म करो ये आत्मविद्रोह
हाँ तुम्हे खुद आना ही होगा
और तुम्हे थामना होगा ,
मुझे भी अपने "धुव " की तरह
देना होगा वो अपने श्री चरणों में अटल स्थान |
नहीं तो जारी रहेगा
आत्मविद्रोह
देखना हैं तुम मुझे और कितना दुःख दे सकते हो
और में कितना सह सकती हूँ
हार जाओगे तुम मुझे दुःख देते - देते
इतना कठिन हैं मेरा आत्म विद्रोह
हां , ये आत्म विद्रोह
मागुंगी नहीं कभी इन होठो से
सहती ही रहूंगी
बस सहती ही रहूंगी |
मुझे भी देखना हैं
कितना सुखी हो ,
खुश हो ,
मुझे यूँ करते देख,
महीनो से आत्म विद्रोह |
"तुम्हारी अनुभूति "