तलाश
मन ढूंढ़ रहा हैं कही तुम्हारे शब्दों को
अधूरे पड़े सवालो के जवाब देने वाले तुम क़हा हो ?
बैचेन हूँ मै , मेरी आत्मा
खामोशी से कही ना कही कुछ चल रहा है रूहों मै
मै भी हूँ इससे बाबस्ता और तुम भी
फिर क्यों छिपे बेठे हो यूं तुम पर्दों के पीछे ?
जहा भी हो जवाब दो
मेरे शब्द तुम्हारे शब्दों के अपनत्व को खोज रहे हैं
बिना किसी स्वार्थ के
बिना कुछ जाने ,पहचाने
इतना जानती हूँ रूह रूह को खोज रही हैं |
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