मेरे ठाकुर !
मेरी प्रीत तुझसे ही .ये सांसे तुझसे ही
और कुछ ना जानू मे दुनिया की रीत
जो निभा ना सकू तुझसे अपनी प्रीत
तो मेरी इन सासों मे
मेरे राम नहीं
मेरे राम बसे हैं मुझमे मेरी आत्मा बनकर
श्री चरणों मे अनुभूति
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तेरी तलाश
निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................