बिन कहे भी सब कुछ कह जाते हो तुम
मेरे आस पास आकर हर अहसास को केसे छु जाते हो तुम |
नहीं मालूम तुमसे रिश्ता क्या हैं मेरा ?
नीत अपने शब्दों से क्यों ?जीने को मजबूर कराते हो तुम |
तुम जानो ,मै जानू हर शब्द के अहसास को
फिर क्यों शब्दों मै उलझाकर रुलाते हो तुम ?
तुम जानो पल पल तुम्हारे शब्दों के अहसासों को समझू मै
क्यों दूर रह फिर छल जाते हो तुम ?
मै एक टूटी कश्ती जिसका नहीं कोई मंजिल अब ,
फिर क्यों एक बार फिर जीवन के ख्वाब दिखाते तुम ?
मिलो के फासले पर भी रूह मै समाया है तुम्हारा हर अहसास
ये समझ कर भी क्यों तडपाते हो तुम ?
मेरे पास नहीं तुम्हारी तरह जीवन के ज्ञान का सागर
मेरे पास तो हैं बस दर्द की सरिता
मेरे मन के मानस क़हा खोजू तुम को
तुम्हारी विशालता का कोई आदि हैं अंत
क्या कभी खोज पाउगी तुमको ?
पा सकुगी तुमको नहीं मालुम
फिर भी दिवानो की तरह हर शब्द मै खोजती हूँ तुमको
जानती हूँ ,कहो ना कहो मेरी तरह तुम भी हर पल खोज रहे हो मुझको तुम
केसे कहू ?
मेरे हर अहसास मै हो तुम हां तुम
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
तेरी तलाश
निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................
-
ये कविता किसी बहुत बड़े दार्शनिक या विद्वान के लिए नही है | ये कविता है घर-घर जाकर काम करने वाली एक साधरण सी लड़की हिना के लिए | तुम्...
-
गोकुल के घनश्याम मीरा के बनवारी हर रूप में तुहारी छवि अति प्यारी मुरली बजाके रास -रचाए | और कह ग्वालों से पट तो गै रानी अरे कान्हा , मी...