ये कविता किसी बहुत बड़े दार्शनिक या विद्वान के लिए नही है |
ये कविता है घर-घर जाकर काम करने वाली एक साधरण सी लड़की हिना के लिए |
तुम्हे सलाम करती हूँ हिना
सलाम करती हूँ .
जिन्दगी की मुश्किलों से लड़ने की
तुम्हारी ताकत को .
तुम मेरे लिए बहुत ख़ास हो
तुम्हारी वे मासूम सी बातें
और,
अपने परिवार के पांच लोगो को पालने का बोझ ,
और,
उसमे दम भरती तुम्हारी सपने देखने की चाहतें .
कितने ख़ूबसूरत,सरल और सच्चे सपने हैं तुम्हारे .
वे कभी कानो के बूंदों की फरमाइश
और उन्हें पहनकर बहुत खुश होना,
और अपने को एक टक सा आईने में निहारना
कितना सुन्दर और जीवंत होता है
तुम्हारा हर एक सपना
तो, कभी मुझसे दाल -चावल खाने की फरमाइश करना .
सोचती हूँ ,
तुमसे सीखना चाहिए उन लोगो को ,
जो हार कर घर बैठ जाते हैं ,
और अपने सपनो को आँखों में ही लिए,
दम तोड़ देते हैं .
और किस्मत का दोष निकालकर रोते हैं |
अहले सुबह ,
जब दुनिया बिस्तर में ही होती है
एक मासूम सी
पद्रह साल की लड़की ,
सुबह छ बजे दरवाजा खटखटा रही होती है |
सुबह के दस बजे मोहल्ले का काम निबटा कर .
तुम भूखे पेट ही चल देती हो स्कुल ,
अपने पढने की चाहतो को मन में समेटे ,
और , शाम को पूछने पर कह दिया करती है -
"दीदी भूख ही नहीं लगती "
मुझे अन्दर तक डरा देते हैं तुम्हारे ये शब्द !
हर रविवार को चाँद निकलता है,
दिन में ,
सारी मुश्किलें , सारा दर्द ,
सब कुछ रविवार को कहीं नहीं होता
क्योकि हर रविवार को
चाँद ,
हिना के चेहरे पर चमक रहा होता है |
उस चाँद के आगे हम दोनों भूल जाते हैं और
उसके सपनो के सौदागर की बातो में कही खो जाते हैं |
कितनी आरजू हैं उसकी की,
वो भी दुल्हन बने
सोचती हूँ ,
कुछ सुलझाने की कोशिश करती हूँ .
क्या हिना अपने सारे लोगो को छोड़ कर
कभी अपने हाथो में रचा पाएगी हिना ?
हर बार
ये पूछने पर कि तेरे बाद,
इन भाई -बहनों का ,
और बीमार माँ का क्या होगा ?
हिना कुछ नहीं कहती ,
खो जाती हैं
अपनी कडाही और चाय की भगोनी में ,
और, में खो जाती हूँ
इसी सवाल में कि कब रचेगी
हिना के हाथो में भी हिना ?
सलाम करती हूँ तुम्हे मै हिना ,
क्योकि ये समाज बड़ी बड़ी बाते ही करता रहेगा ,
तुम्हे ये नहीं दे सकेगा अपने सपनो का सौदागर .
तुम्हारा नाम नहीं होगा किसी पुरस्कार या सम्मान की सूची में ,
इसी लिए कोशिश करुँगी की मिलवा सकूँ
तुम्हे अपने सपनो के सौदागर से.
में कामयाब रहूँ दोस्तों,
यही दुआ करना |
हां ,
हिना ,
सलाम करती हूँ तुम्हे...
-- अनुभूति