हर तरफ बिखरी हैं कालीघटाएं
झूम- झूम के कह रही हैं चलो आज तो कोई गीत गाये |
झूमता हैं मन इन घटाओ के साथ ,
सजता हैं तन इन फिजाओं के साथ,
क्या कहना चाहता हैं मेरे मन ,कुछ मुझको भी बता दे ?
क्यों जी उठी हूँ फिर आज मै इतना तो याद दिला दे ?
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