एक कविता तुम्हारे नाम
वो कहते है मुझसे की मुझ पर भी तुम एक कविता लिखो
हां ,कविता हसी आती है मुझको उनकी इसी बात पर
कविता केसे कहू तुमपर ?,
तुम तो वो जलता दिया हो जिसकी रौशनी हु मै
जानती हूँ मै तुम्हारी ही रौशनी हूँ
और तुम ही तो हूँ वो जिसने खुद जलकर दिया है मुझको जीवन
क्या लिखू कविता अपने अस्तित्व पर ?
हां तुम्ही ने तो दिया है सरिता को अस्तित्व
तुम्ही ने तो दिया है एक सपना
सरिता को अपने सागर से मिलने का
हां तुम ही तो हो वो ज्ञान का सागर
जिसकी तलाश मै भटक रही है सरिता
हां तुम ही तो हो मेरी इच्छाओ का अनंत आकाश ,
मेरे ख्यालो की ताबीर
क्या लिखू कविता अपने ही अस्तित्व पर ?
फिर भी तुम कहते हो की मै तुम पर भी एक कविता लिखू !
क्या कहू तुमसे ?जब सामने होती हूँ तो शब्द को कमी हो जाती है
मेरे शब्द कोष मै ,और मै पागलो सी भटक जाती हूँ
अनजान डगर पर ,
और तुम अचानक ही , मुझको खीच लाते हो मजाक ही मजाक मै
एक हनी खाब की ताबीर की और.
वो सरिता के किनारे को तुम्हारा साथ
बड़ा अच्छा लगता है |
इस झूटी दुनिया से कही दूर सच का सामना करने की ताकत
देते है मुझको तुम्हारे ये शब्द
और तुम कहते हो की मै एक कविता तुम पर भी लिखू ?
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
तेरी तलाश
निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................
-
ये कविता किसी बहुत बड़े दार्शनिक या विद्वान के लिए नही है | ये कविता है घर-घर जाकर काम करने वाली एक साधरण सी लड़की हिना के लिए | तुम्...
-
गोकुल के घनश्याम मीरा के बनवारी हर रूप में तुहारी छवि अति प्यारी मुरली बजाके रास -रचाए | और कह ग्वालों से पट तो गै रानी अरे कान्हा , मी...