मेरे ठाकुर !
मेरी प्रीत तुझसे ही .ये सांसे तुझसे ही
और कुछ ना जानू मे दुनिया की रीत
जो निभा ना सकू तुझसे अपनी प्रीत
तो मेरी इन सासों मे
मेरे राम नहीं
मेरे राम बसे हैं मुझमे मेरी आत्मा बनकर
श्री चरणों मे अनुभूति
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
तेरी तलाश
निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................
-
गोकुल के घनश्याम मीरा के बनवारी हर रूप में तुहारी छवि अति प्यारी मुरली बजाके रास -रचाए | और कह ग्वालों से पट तो गै रानी अरे कान्हा , मी...
-
ये कविता किसी बहुत बड़े दार्शनिक या विद्वान के लिए नही है | ये कविता है घर-घर जाकर काम करने वाली एक साधरण सी लड़की हिना के लिए | तुम्...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें