मेरे कृष्णा !
हार गयी हैं तेरा इतंजार करती दर्द करती मेरी आँखे
हर आह का दर्द मेरी सांसो पे भारी
मे नहीं जी पाऊं अब
कृष्णा !
अब सह नहीं पाऊं दुनिया की बतिया सारी
मुझे नहीं निभती कोई प्रीत न दुनिया की रीत मुझे होके ख़ाक अब मिट जाने दे
मेरे माधव !
क्षमा कर में नहीं लायक तेरी प्रीत के
,न ही मेरी कोई भक्ति अपार ,मुझे स्वीकार अपने बैकुंठ
अपने श्री चरणों की सेवा में
अनुभूति
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें