मानव तन के साथ परमात्मा ने अपने ही अंश के स्वरूप सबको एक पवित्र आत्मा से अलंकृत किया है , उन्ही अलंकारों की जीवन अनुभूति है रसात्मिका | सबकुछ समाप्त होता हैं पर प्रेम यात्रा करता है अपनी दिव्य चेतना के साथ इस लोक से परलोक वही यात्रा है रसात्मिका
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निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................
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