मेरे श्याम !
तुम तो कह दो अपने अधरों पे धर मुरलिया.
दिल की हर बात,
और में बावरी सुन -सुन ही खामोश,नीर बहाती ही रह जाऊं ,
एक ही स्वप्न इन आँखों का
उसके लिए हर सांस मरती जाऊं
तुम तो युग दृष्टा तुम जानो इन सांसो की बात ,विचलित होता हैं मन ,
तुम्हरा दिया ये नव सृजन
तुम्हारे कदमो में न सोप दूँ जब तक
ये तन ,मन आत्मा केसे में जी जाऊं !
संसार निभाते हो तुम
में नहीं जी पाऊं
तिल-तिल मरने की सजा में तुमसे पाऊं
केसा संसार तुमने नाम लिखा हैं
कुछ पल की चरण सेवा का मेरा स्वप्न तुमने
छिना हैं फिर में ज़िंदा हूँ
एक आस में की कभी तो कही होगा
तुम्हारे चरणों में मेरा मोक्ष
समझ आती ये दुनिया
तो इस आत्मा को बिना समझे
तुम्हारी दासी न होने देती
हां ,अब जो सोप दी हैं आत्मा
तुम्हे मेरे मुरली मनोहर !
तो हर सांस की तड़प हो या
रोज का मरना
ये मेरी नियति हैं !
मेरा मिटना हैं तुम्हारी ख़ुशी तो
तो में मिट जाउंगी
हां एक बात तो बता दो मेरे कृष्णा !
कब तक तुमसे विरह की ये सजा पाऊँगी |
तन समझा लूँ पर इस आत्मा को कित समजाऊं
ये तो मान बेठी हैं तुम्हे ही अपने प्राण
बोलो मेरे श्याम !
इस तुच्छ संसार जो न पाऊं में तेरे चरणों की सेवा
को क्यों जियूं में ?
तुम तो संसार के अधिकारी नो
मेरे तो तेरे चरणों की सेवा के
कुछ पल ही आभारी
न पाऊं तो ये नित दिन बढता योवन ,तन मन किस काम का
ये में अपने ही अंतस को तिल -तिल मर अपने ही को खाक बनाऊं
जो पाप हैं मेरा स्नेह तुझसे तो
सजा मेरी यही है में तुझ बिन यूँ ही मरती जाऊं !
तुमको कभी न मेरी पीड़ का अहसास हुआ हैं
तो बोलो किसको समझा सकूँ
तुमसे मेरी आत्मा की ये प्रीत अनोखी
मेरा स्वप्न तुमने अमर कर दिया लेकिन मेरी आत्मा में
सब कुछ जाग्रत कर दिया
मुझसे नहीं सही जाती तेरी अब
कोई कठोरता .
अब मुझे दे दे तू मुक्ति का आशीष.
श्री चरणों में तुम्हारी अनु
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