मेरे राम तुम आशीषों !
आठ सालो का ये बंधन आज जुडा था
प्रियतम संग बंधी थी में आज
जीवन की बगियाँ में खिले नहीं फुल कांटे ही मिले
जो मिला हंस के स्वीकार किया हैं
ये बंधन आज फिर नवीन हो उठा हैं
जो तुम्हारे अमरत्व का आशीष मिला हैं
निभाती चली हूँ हर रस्म
,हर वचन लेकिन जो बंधा हैं आत्मा संग
वो प्रीत तुम्ही से हैं मेरे श्याम !
मेरी आत्मा के अधिकारी तुम हो इस तन से मुझे न काम
जब तक न निकले उन चरणों में मेरे प्राण !
केसे दूर होगा आत्मा का ये विचलन
सबके संग तुम्हे निभाना हैं मुझे में येजानु मेरे राम !
जिद हैं तुम्हारी तो में हंस के मानु
तुम कह दो विष प्याला में पि जाऊं
लेकिन मुक्त न हो सकेगी मेरी आत्मा
बिन चरणों की सेवा के मेरे राम !
जीत लिया तुमने अपने अपनत्व से आत्मा का कोना कोना
फिर भी मुझे इस संसार को हैं अभी जीना
में जियूंगी लेकिन हर सांस पे सदा होगा तुम्हरा नाम
में ऋणी हूँ तुम्हारी मेरे राम !
कोई छुटे मुझसे गम नहीं
तुम न जाना इन साँसों से दूर
जी न सकेगी तुम्हारी पगली
ये जानो तुम !
मेरे जगदीश्वर राम !
श्री चरणों में तुम्हारी अनु
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