सोमवार, 14 नवंबर 2011

मैं तो तेरी ही चाकर हूँ श्याम !

मेरे कृष्णा!
कोई भोर नहीं ऐसी जो मैं,
तुझसे लड़ते -लड़ते ,
रोते -रोते न जागू...........
तेरा नाम लेते -लेते दुनिया मुस्काए और मैं  रोती ही जाऊं 
तुम  ही तो कहते थे सब कुछ तुम पे छोड दू ,,,,,
छोड दी थी हर सांस ,हर फेसला ,ये जीवन तुम्हारे चरणों मे ...
 और तुम मुझे यूँ रोता छोड गए हो ......
मेरी  प्रीत काहे तुम पहचान न सके !
एक ही सच्ची आत्मा ,परम पुरुष का भाव
 मेरी आत्मा मे मेने पाया था .........
 जो इन चार दीवारों मे रोते -रोते ही मिट जाना 
तुम्हरा फेसला तो मुझे हंस के स्वीकार ,
 मेने तो माँगा था सिर्फ 
एक बार तेरी चरण धूलि का अधिकार ...............
 मुझे ताना देते हैं दुनिया के लोग मीरा नाम बुलाते हैं 
उन्हें नहीं पता  मेरी आत्मा का कितना बड़ा उपहास वो कर जाते हैं
 न मैं  मीरा की तरह छोड पायी ये चोबारे ................
न  ही देख पायी एक झलक प्यारी
 जिस दिन मेरा श्याम !
मेरे  सामने आएगा 
उसकी पलकों के झुकने -गिरने से ,
मेरे मरने जीने का फेसला हो जाएगा...............
उसकी ही हुकूमत का अंदाजा उसे नहीं तो मे क्या करूँ ?
 मे बस जी रही हूँ ले कर तेरा नाम मेरे माधव !
 इस संसार से मुझे नहीं कोई काम ,
मुझे नहीं करना किसी की चाकरी
मैं तो तेरी ही चाकर हूँ श्याम !
तुम्हारे श्री चरणों मे करती हैं 
तुम्हारी अनु अपनी आत्मा के रोम -रोम से 
सदा अश्रु पूरित प्रणाम |





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तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................