मेरे कृष्णा !
जब भी अपने को आईने मे खड़ा पाती हूँ
,किसी कोने से अपनी ही आत्मा का अंतस छू जाती हूँ ,
जब हो तुम मेरी सासों के मालिक ,
मेरे निगेहबा
तो काहे इतना तड़पाते हो काहे !
अब दो इन सजाओं का अंत कर दो
कुछ पल ही सही साकार स्वीकार करो
मेरे कृष्णा !
अपने श्री चरणों मे ये धुल
तुम क्या जानो हर सांस कितनी तडपती हैं
तुम्हरा चाँद आज अंधरो से घिरा पड़ा हैं
लेकिन आत्मा के रोम -रोम के अधिपति हो तुम ही
मर सकना मंजूर हैं इन सांसो से तुझसे दूर जाना नहीं
मुझे एक पल को ही सही
जीना हैं तेरे कदमो मे
श्री चरणों मे तुम्हारी अनु
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