पुकारती हैं तुझे मेरी आहें
तो बहते हैं अश्क, इन आँखों से
तेरे बिना नहीं हैं जीवन का कोई साथ
जिन्दगी काश बया हो पाती तो
में अश्को से बया कर देती अपनी आहो का दर्द
जो मुस्कुराहट बन के सजा करता था मेरे लबो पे
वो आज जखम बन के इन आखो से बहा करता हैं
मुस्कुराहट न सही वो ज़िंदा हैं इन आसुओं में
मेरे रब तेरी ये मेहर ही मुझपे क्या कम हैं ......
अनुभूति
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