श्री कृष्णं शरणं ममः |
अब सौप दिया जीवन सुख,
हर बार नया कोई आक्षेप ,
सब तुम्हारे इन चरणों में |
हर बार लेते आये हो नित नयी परीक्षा ,
एक बार जो जीना चाहा पल भर अपने ,
को भूल ये संसार,
तो स्वार्थी होने का ये आक्षेप तुमने मुझेपे मड डाला
आत्मग्लानि से मन छलनी हैं
क्या मेरी आत्मा में परभी तेरा ऐसा वास !
जो सहना पड़े मुझे आज स्वार्थी होने का आक्षेप
क्या कमी हैं मेरे प्रभु मेरी भक्ति में ,
मेरे समर्पण में
सब कुछ तो हाथ बड़ा छीन लिया,
तुमने बनवारी ,
तेरी मुस्कराहट में,
खोयी में भी तो ,करती गयी
अपना स्नेह ,समर्पण ,
पल -पल न्योछावर
तुमने दुनिया के लिए बनायी सारी खुशियाँ
और मुझसे एक पल में ,
छीन लिया मातृत्व के स्वप्न का भी अधिकार
संसार मांगे तुझसे कान्हा!
वात्सल्य ,प्रणय अनुराग
में मागु तुझसे अपने तिल -तिल ,
मिटने का अधिकार
आज त्यजति हूँ,
भोजन ,बिछोना
तेरे सपनों का संसार
अब तुझे ही आना होगा ,
सुनकर मेरी करुण पुकार
सुदामा को दे त्रास ,
तुमने खुद ही अपना आरोप हटाया था
अब तुम्हे आना होगा
और मुझे खुद मुक्त करना होगा
जीवन के इस आक्षेप से
,कहूँगी नहीं सिर्फ पुकारू
हर सांस लेकर तेरा नाम |
दूंगी प्राण तुम्हारे ही चरणों में ,
करते करते तुम्हारा स्मरण,
श्री कृष्णं शरणं ममः |
श्री कृष्णं शरणं ममः |
श्री कृष्णं शरणं ममः |
"तुम्हारी अनुभूति "
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