ओ कान्हा की मैया ,
तेरे आँचल में हैं कितनी प्यारी छइयां,
कितना आलौकिक स्नेह तुम्हारा माँ |
देख तुम्हारा लाड बरसे मोरी अँखियाँ
जितना चाहूँ मैं अपने अधूरे स्वप्न को ,
जितना चाहूँ मैं अपने अधूरे स्वप्न को ,
उतना तुम चाहो अपने कान्हा को
एक बार में भी अपने आंचल में लेना चाहूँ ,
तुम्हरे कान्हा को,
इतनी सी बिनती मेरी भी सुन लो मैयां
मेरा तो सूना पड़ा वात्सल्य संसार
तुम ही दे दो जीवन के कुछ ममता भरे पल उधार
मेरे स्वप्न कभी न होंगेपुरे मेरी तरह
मुझे दे दो कुछ पल कान्हा का लाड दुलार
मेरा जीवन भी करो ममता से सरोबार
ये ही विनती हैं तुमसे ओ कान्हा की मैयां
ओ माँ तुम तो माँ हो समझ सकोगी ,
मेरा लाड, मेरी वेदना
तुमसे तो कह भी सकू हूँ मन की अधूरी तड़प
किसको कहूँगी नहीं तो अपना वात्सल्य संसार
मुझको कुछ पल के लिए ही सही,
दे दो कान्हा को मेरे आंचल में,
मुझे भी माँ बना दो
हाँ माँ,हाँ अधूरी स्त्री होने का ये कलंक मिटा दो
मुझे भी कुछ पल के लिए अपने कान्हा की माँ बना दो |
अनुभूति
1 टिप्पणी:
बहुत खूब। भक्ति रस की धारा बह रही है।
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