रविवार, 1 मई 2011

रूठी जो राधा

ओ कान्हा !
हर बार रूठ जाओ तो मनाये राधा ,
इस बार रूठी जो राधा मना न सकोगे ,
हर बार तुमने गिराई हैं पगली की आँखों से 
अश्रु धार , अबके माने नहीं राधा 
तू बजाये मुरली कितनी ही,
न माने अब  तो राधा 
न माने  अब तो राधा 
तुम्हे श्याम अब तो साकार 
रूप दिखाना ही होगा अपनी,
पगली राधा को मनाना ही होगा ,
न आये श्याम ,बनवारी तो इन ही चरणों में 
पड़ी पड़ी दम तोड़ देगी तुम्हरी राधा रानी |

अनुभूति

2 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

आज तो कान्हा पड गये मुश्किल मे
कैसे मनायें राधा प्यारी
मुरलिया भी काम ना आई
अब होगी जग हंसाई
मान जाओ अब कान्हा प्यारे
हार के राधा को मना लो
वरना होंगे राधा बिन आधे

Unknown ने कहा…

रूठना और मनाना अद्भुत है.. सुंदर है

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................