शनिवार, 19 मार्च 2011

रात बन बेठी हैं चाँद का घूंघट



रात बन बैठी  है चाँद का घूंघट .
और इस चाँद केघूंघट  में ,
राधा को इन्तजार 
अपने कान्हा का , 

 कि कान्हा आयेंगे 
और उसके चाँद से मुख से घूंघट  उठायेंगे . 

इस आस में राधा करे इन्तजार 
 अपने कान्हा का ,
कर सोलह सिंगार |

वो कान्हा बड़ा निर्मोही ,
जब भी राह तके राधा ,
वो दे अंखियन को आंसू .

और जब आए सामने 
राधा दे मुस्काय
ओ कान्हा 
तेरी राधा बड़ी पगली ,दीवानी 
तू काहे सताए  करके मनमानी ,

ये रात नहीं आएगी दोबारा 
कि कान्हा आज सजी है घूंघट  में 
तेरी चांदनी राधा |

9 टिप्‍पणियां:

Girish Kumar Billore ने कहा…

अति सुन्दर

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना!
आपको पूरे परिवार सहित होली की बहुत-बहुत शूभकामनाएँ!

संजय भास्‍कर ने कहा…

कोमल अहसासों से परिपूर्ण एक बहुत ही भावभीनी रचना जो मन को गहराई तक छू गयी ! बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !

संजय भास्‍कर ने कहा…

होली की सपरिवार रंगविरंगी शुभकामनाएं |
कई दिनों व्यस्त होने के कारण  ब्लॉग पर नहीं आ सका

अनुभूति ने कहा…

आप सबको होली की बहुत बहुत शुभकामनायें ।

डॉ० डंडा लखनवी ने कहा…

प्रशंसनीय.........लेखन के लिए बधाई।
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जो तुम जाओगी तो मैं टाटा करूँगा।
किसी भी तरह वक़्त काटा करूँगा।।
न काटे क्टेगा अगर वक़्त मुझसे-
तो फोटो तुम्हारा मैं चाटाब करूँगा।।
=======================
"हर तरफ फागुनी कलेवर हैं।
फूल धरती के नए जेवर हैं॥
कोई कहता है, बाबा बाबा हैं-
कोई कहता है बाबा देवर है॥"
====================
क्या फागुन की फगुनाई है।
डाली - डाली बौराई है॥
हर ओर सृष्टि मादकता की-
कर रही मुफ़्त सप्लाई है॥
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होली के अवसर पर हार्दिक मंगलकामनाएं।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खूबसूरत अभिव्यक्ति

Dr.J.P.Tiwari ने कहा…

ओ कान्हा
तेरी राधा बड़ी पगली ,दीवानी
तू काहे सताय करके मन मानी ,
ये रात नहीं आएगी दोबारा
के कान्हा आज सजी हैं घुंघट में
तेरी चांदनी राधा |

मनमोहक कथ्य, अंदाज और शाल्ली प्रभावी. बहुत पसंद आया यह भाव की उत्कृष्टता..

Dorothy ने कहा…

बेहद खूबसूरती से पिरोई दिल को छू जाने वाली रचना. आभार.
सादर
डोरोथी.

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................