तुम से ही मेरा जीवन ,
बिन कुछ नहीं तन,मन शब्द ,प्राण
तुम ही तो जानो सब कुछ मेरे अंतस के स्वामी
विधि का हर लेख तुमने ही पडा हैं लिखा हैं मेरे लिए
दी जो तुमने मुझे अपना ली हँसते -हँसते ,
अच्छा ,बुरा प्रेम ,घृणा सब बन्धनों से परे मुक्त हुयी हूँ हां तुम्हरा ही अंश हूँ
अक्स तुम्हारा ही झलकता हैं मुझमे कोस्तुभ धारी !
तेरी ही रूह ,
तेरा ही अक्स ,
तुझमे मिलता जा रहा प्रति क्षण मेरे राम !
न दुःख ,न कोई शोक, न कोई ग्लानी ,अब मन में लाओं
मेरे कृष्णा!
नियति मेरी ये ही ,बस हँस के श्री चरणों में
स्वीकारो मेरे प्राण !
श्री चरणों में अनुभूति
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