मेरे कृष्णा !
मेने देखा इतना साकार रूप तेरा
पर फिर भी आत्मा करे न विशवास
की ये तुम कह जाओं मुझे ,
मेरी आत्मा की विदीर्ण पुकार
तुम्हे अंतस से कर रही पुकार,
तुम चाहों पर कुछ न मेरे लिए कर,
पाओं कम से कम इतनी कटुता के भाव
इस रुदय के छलनी अस्तित्व पे मत लगाओ
,मेरी आत्मा का रोम -रोम
ऋणी तुम्हरा मेरे श्याम !
सदा हैं सदा रहेगा
इन चरणों में शीश झुकता ,
समर्पित जीवन तुम्हे ये कब से पहुचा दो बस अब मोक्ष के धाम
अनुभूति
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