सोमवार, 29 अगस्त 2011

मेरी आत्मा की विदीर्ण पुकार

मेरे कृष्णा ! 
मेने देखा इतना साकार रूप तेरा 
पर फिर भी आत्मा करे न विशवास 
की ये तुम कह जाओं मुझे ,

        मेरी आत्मा की विदीर्ण पुकार
 तुम्हे अंतस से कर रही पुकार, 
तुम चाहों पर कुछ न मेरे लिए कर,
     पाओं कम से कम इतनी कटुता के भाव
इस रुदय के छलनी अस्तित्व पे मत लगाओ 
,मेरी आत्मा का रोम -रोम
 ऋणी तुम्हरा मेरे श्याम !
 सदा हैं सदा  रहेगा 
  इन चरणों में शीश झुकता ,
  समर्पित जीवन तुम्हे ये कब से पहुचा दो बस अब मोक्ष के धाम

अनुभूति
 

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निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................