मेरे कोस्तुभ स्वामी
तुम मेरी इन उलझी सांसों की धडकन ।
मेरे जीवन का रास्ता
मेरे जीवन का चिराग
जब तुम ही नहीं रहोगे तो
में क्या करुँगी इस तन का ,इस मन का
तुम बिन जीना सोचा ही नहीं एक पल मेने
कभी जो तुमने तय किया वो आंसू वो मुस्कान
मेने तुम्हारा आदेश मान अपने होठो पे सजा ली
में नहीं जानती मेरे कृष्णा तुम कभो आओगे या नहीं
हां तुम साथ हो इसी आस और अक्ष्णु विशवास के साथ
ही तो जिन्दा हूँ में अपने प्रणय स्वप्नों में
तुम्हारे एह्साओ से ही आज भी खनकती हैं मेरी रूह
कभी हँसती हैं पागलो की तरह
तो कभी दूजे ही पल तुम्हारी कठोरता पे बहाती हैं नीर
मेर पास मेरा कुछ भी नहीं
सब कुछ तेरा दिया हैं सासों में
में तो मान चुकी गिरधर तुझको अपने प्राण
जिसदिन रूठी मुझसे तेरी मुरली ,
उस दिन बिन विधाता के तय किये ही निकलंगे मेरे प्राण
कोई वचन विशवास की रेखा नहीं होगी
कृष्णा
तब तेरे मेरे इस आत्मीय सम्वाद के बीच
मेरी आत्मा का रोम रोम तुम जानो मुरलीधर
फिर काहे मुझसे ही इतना
कठोर तप करवाओ
तुम न कहो तो में जानू
तुम्हरे अंतस का हर स्वप्न
में ज़िंदा हूँ
जन्मी हूँ
इसलिए की मेरे कृष्णा कर सकू तेरी विचलित आत्मा
के अंतस का हर स्वप्न
श्री चरण में अनुभूति
तुम्हारी मेरे गिरिधर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें