मंगलवार, 2 अगस्त 2011

कितने सरल हो तुम कृष्णा


में बावरी तेरी कृष्णा
देखू जब अखियन भर में तेरी वो धवल छबी
खो जाऊं में
सवप्न प्रणय में तोरे संग
कितने सरल हो तुम कृष्णा
संसार के लिए जितने जटिल मेरे लिए उतने ही सरल
सोचती हूँ तुम्हारा स्नेह सागर तो पगला जाती हूँ
मुझको भी मुझ जेसा मेरा कृष्णा मिला हैं
कितने रूप तुम्हरे गिरधर गोविन्द
में बावरी तुहारी कृष्णा
तेरे ही स्नेह रंग रंगी हूँ में
सदा रंगी रहू यूँ ही
श्री चरणों में अनुभूति


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निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................