ओ मेरे कृष्णा !
तेरी मेरी प्रीत अनोखी
न देखा तुने मुझे मन भर
न मेरा ही मन भरे तुझे निहारे- निहारे
मन की प्यास बुझे न मेरी
जितना देखू ये मन तुझे ही खोजे चारो और
तेरे होठो पे धरी मुरली की सरगम मेरे कानो में जीवन का अमृत घोले ,
तेरे कदमो में मिटने की चाह
जीवन से लड़ने का रास्ता खोले
क्या मेरे कन्हाई तुम कभी इस पगली की पुकार पर चले अओगे बैकुंठ से
सोचती हूँ कृष्णा जितना में तुझे पल -पल चाहूँ
कभी सोचो भी तुम मुझको भी,
इतना ही चाहों इतना ही
समझो भी जानो भी
मेरे गिरिधारी
तुझे चाहे संसार ,
तुम तो अनंत ज्ञान के स्वामी
सोचती हूँ में भी एक घुट
उस ज्ञान का तुम्हारे चरणों से पा जाऊं
तो नव जीवन का अनुराग
में भी पा जाऊं
तेरी मेरी प्रीत अनोखी
न देखा तुने मुझे मन भर
न मेरा ही मन भरे तुझे निहारे- निहारे
मन की प्यास बुझे न मेरी
जितना देखू ये मन तुझे ही खोजे चारो और
तेरे होठो पे धरी मुरली की सरगम मेरे कानो में जीवन का अमृत घोले ,
तेरे कदमो में मिटने की चाह
जीवन से लड़ने का रास्ता खोले
क्या मेरे कन्हाई तुम कभी इस पगली की पुकार पर चले अओगे बैकुंठ से
सोचती हूँ कृष्णा जितना में तुझे पल -पल चाहूँ
कभी सोचो भी तुम मुझको भी,
इतना ही चाहों इतना ही
समझो भी जानो भी
मेरे गिरिधारी
तुझे चाहे संसार ,
तुम तो अनंत ज्ञान के स्वामी
सोचती हूँ में भी एक घुट
उस ज्ञान का तुम्हारे चरणों से पा जाऊं
तो नव जीवन का अनुराग
में भी पा जाऊं
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