मेरे कृष्णा ,
ये स्ध्य स्नाता ,
त्याग मन के सारे आवेश
करती हैं तेरी पत्थर की मूरत को प्रणाम
मेरे कृष्णा !
किस गुनाह की रोज में सजा भुगतती हूँ
रोज तेरे चरणों में गुहार लगाती हूँ कहती हूँ
श्याम अब तो बोलो
घनश्याम ये सजा क्यों दी हैं,
वो तो बोलो
नहीं कहो .
तो कम से कम से ,
दुनिया से मुझे ले चलो
अपनी दुनिया में ,
हां स्वर्ग नहीं नरक ही दे दो
मुझे इस कठोर संसार से मुक्ति दे दो बस
सहने की क्षमताएं नहीं मुझमे
न जाने कब से में तुमसे ,
अपने लिए मांगती आई हूँ ,गुहार लगाती आई हूँ
म्रत्यु ,पर तुम मुझे देते रहे हो सदा
उससे भी बड़े नरक
मेने किसी का क्या बिगड़ा हैं ,
इस संसार में इतना दो बता दो कन्हाई !
मेने नहीं दिया किसी को दुःख कभी
सदा सब तेरी मर्जी मान के सहा हैं |
प्रभु !
त्राहि मामं , त्राहि मामं , त्राहि मामं
अब नहीं बस ,
कभी तो रहम करो
कभी तो इस पागल की पुकार सुनो
सुनो भगवान अब तो सुनो
मेरे ठाकुर !
मेरे गोपाला !
अब मुझे मुक्त कर दो !
अनु की पुकार कभी तो सुनो !
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