सुबह की भोर और इन घने मेघो के चाँद में और आज की भागवत में मेने ,ओ पीताम्बर धारी ! आप के सुनहरे रूप का जो अद्भुत दर्शन किया हैं बस वही भाव फुट पड़े हैं | इसीलिए हे जगदीश्वर आप मेरी आत्मा में सदा वास करो ये ही आशीष मुझे दो |
ये सुहानी भोर ,
रूह को छूती इस पुरवाई में
और मेघो से चमकते चाँद में भी
तुम ही बसे हो श्याम ,
में कितनी बार रूठू तुमसे
ओ कान्हा जी!
और एक मुस्कुराहट से ,
मना ही लो मुझे तुम
ओ गिरधारी!
जितने सरल तुम ,
उससे भी सरल हैं तुहारी ये सखी बावरी
मुग्ध हूँ सरलता पे तुहारी ,
हँसती भी जाऊं रोती भी जाऊं
स्वप्न में भी जो आके,
तुम मुस्काओ तो में खिल जाऊं
केसे बताऊ कित -कित में तुम्हे ही पाऊ!
कृष्णा !
बह जाने दो आज स्नेह नीर,
इन अंखियन से
धुल जाने दो अपने चरणों को
बह जाने दो मन की सारी शिकायते
ये आसू नहीं स्नेह टपकता हैं ,
तुम्हरा इन अखियों से
बह जाने दो ,
क्योकि ये तो अथाह हैं
इस ह्रदय में !
ओ कान्हा!
तेरी ही मुस्कुराहट हैं ,
मुझको इस अरबो के संसार में,
अपनी साँसों से प्यारी
तुम एक बार जो मुस्कुरा दो ,
में जी जाऊं ,
सह जाऊ न जाने,
कितने जन्मो की पीड सारी |
मांगू यही तुमसे बस ,
ये आत्मा जब तक हैं तुम ही
ओ कोस्तुभ धारी !
बने रहो इस आत्मा के स्वामी
बहाते -बहाते तुम्हारे चरणों पे,
मुझको भी हो जाने दो
इस आत्मा को भी निर्मल |
श्री चरणों में
"अनुभूति "
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