मेरे कृष्णा!
में इस संसार की सबसे बड़ी
पगली, तेरे नाम की दीवानी
जो में तितिली होती,
तुहारे चारो और ही मंडराती ,
जो में शब्द होती ,
तो तुम्हारे हाथो से ही लिखी जाती ,
जो में निनाद होती ,
तुम्हारे कंठ से छू कर जाती
मुरलिया होती तो ,
तुम्हरे अधरों पे ही धरी जाती
उन अधरों की मिठास में पा जाती ,
जो मुरलिया होती तो
पल -पल तुम्हारे हाथो में ही थामी जाती
जो मुरलिया होती तो
पल -पल तुम्हारे हाथो में ही थामी जाती
जो पीताम्बर होती ,
तुम्हरे से लिपटी होती
तुम्हरा रोम -रोम छू जाती
जो में राधा होती ,
रख तुम्हारे काँधे पे सर,
मुरली के सुरों में ही खो जाती
जो में कोई गीत होती तो
तुम्हारे संग रास रचाते
तुम से ही गुनगुनाती
जो में रंग होती ,
तुम्हारे हाथो में खिल रही होती
जो पुष्प होती
तुम्हारे इन कदमो से,
ही लिपटी पड़ी रह जाती
हां कृष्णा !
मेरे कोस्तुभ स्वामी !
तुम जो आ जाते ,
में इन पलकों से तुहारी राह बुहारती
श्याम मेरे ये तो अधूरे स्वप्न हैं
में पुकारूं तुम्हे पर तुम न आओ
इसीलिए कहती हूँ ,
कभी तो दया करो
मेरे दया निधे !
संसार के करूणा सागर !
तुम्हे पुकारते -पुकारते
हँसती- हँसती में जगती हूँ
रोती- रोती ही में सो जाऊं |
अनुभूति
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