मेरे कृष्णा,
विचलित मन था थाह पायें तो कँहा,
चैन आयें तो कँहा ,
तेरे चरणों में ,
चाहूँ कह दू तुझसे बतियाँ सारी,
कान्हा !
तेरी सेवा के भी पहरे हैं जिन्दगी के
बस तड़प -तडप ही रहूँ बस में
तरसूं बस तेरी हर आत्म आनंद अनुभूति में ही
किसे समझाऊं ये मन की भाषा
दुनिया की समझ से परे
मेरे आह का दर्द जाने तू ही
मेरे आह का दर्द जाने तू ही
कान्हा !
कहूँ केसे !
तुझे भी मुझे ले चलो अपनी पनाहों में
कब तक पीती रहूंगी ये जहर में
कान्हा !
आखिर कब तक सहती ही रहूंगी
तेरे दरबार में मेरा भी इन्साफ कर
एक बार
मेरी भी बेचैन रूह को चेन दे एक बार |
अनुभूति
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