मेरे कृष्णा !
तेरी पनाहों में जो आ जाएँ
वो सब कुछ पा जाएँ
ये जिस्म रहे न रहे तेरी इबादत में
पर हर घड़ी मेरी रूह ,
मेरी हर सांस से तेरी इबादत करती हैं |
मेरे कोस्तुभ स्वामी !
ये रास्ता मुझे खुद आप ने ही दिया हैं मुझे
इन रास्तो पे बड़ने का होसला न जाने कब से
रूह अपने में संजोये बेठी हैं |
बाकी हैं कृष्णा !
अभी स्वप्न सारे आप की आँखों के
पूरा करना ही इबादत हैं मेरी
अपनी रहमतो का साया मुझपे यूँ ही
लुटाये रखना ,
रूह को जब कान्हा !
तेरी मेरे होसलो पे यकीं आजाये
मुझे पुकार लेना
सूरज उगना बदल सकता हैं
धरती अपनी फितरत बदल सकती हें
लेकिन ये रूह तेरे कदमो की इबादत में
सदा यूँ ही मोजूद रहगी |
अनुभूति
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