मेरे मुरली मनोहर,
इस वेदना में भी असीम शान्ति हैं ,
मन की अग्नि को शांत करता ये अश्रु जल हैं
क्योकि इन सब की अंतरंगता में कान्हा
तुम्हारे स्नेह का बहता निरंतर अमृत हैं |
बावरी हूँ तुम्हारी
गिरधारी !
ये स्नेह भी तुम से ,
ये हठ भी तुम से ,
ये भक्ति भी तुम से ,
ये क्रोध भी तुम से
इस माटी की गुडिया के प्राण भी तुम से ,
मस्तक के रक्त बिंदु सा चमकता,
मेरा भक्ति संसार भी तुम से |
मेरा क्या हैं सब कुछ तो तुम से ही हैं,
कान्हा मेरे !
तुम हठी हो तो में भी हठी हूँ !
हम एक से ही क्यों हैं प्रभु !
इसीलिए तो शायद भेद नहीं रोम -रोम का
मेरी तू जाने साँसे ,
तेरी साँसे में जानू
जान के भी अनजान
प्रीत अनोखी हमारी
केसी अजीब वेदना हैं हमारी |
एक आत्मा . एक प्राण
फिर भी पल -पल ले रहे,
एक दुसरे का इम्तिहान
वाह रे गिरधारी!
ये बावली मीरा तो तुझपे हारी
अब दे तू विष प्याला भी तो हँस के पी जाऊं
स्वार्थी नहीं , समर्पित हैं
ये मेरे जीवन की प्रीत हैं न्यारी
ये ही हैं अनमोल खजाना जीवन की पूंजी का !
सब कुछ छोड़ के पाया हैं नाम तुम्हारा
ओ मेरे श्याम , ओ मेरे घनश्याम
ओ मेरे चित चोर , ओ मेरे रक्षक
ओ मेरे मुरलीवाले !
तुम्हारे श्री चरणों में
"अनुभूति "
2 टिप्पणियां:
बहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...
पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें
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