गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

जीवन सत्य मेरे आराध्य ,मेरे राम

बेबस पड़ी जिन्दगी में,
न जगाओं तुम प्यार भरे सपने .
आदत नहीं हैं सपनो की इन आँखों को ,
क्योकि कोई नहीं अपना 

तो क्योकर तुम पराएँ होकर भी ,
इन आँखों को सपने देखना सिखाते हों |
आंसू , दर्द और तड़प ये ही मेरी नियति हैं 
और ये ही मेरे सच्चे  साथी हैं 
जिन्होंने नहीं छोड़ा मुझे तन्हा 
हमेशा पूरी इमानदारी से मेरा साथ निभाया हैं
जब- जब भी में मुस्कुरायी हूँ 
कुछ पल बाद इन  आसुओ ने इन आँखों से 
अपने साथ होने का एहसास कराया हैं |


मेरे पास सिर्फ मेरे राम मेरे अपने हैं 
जिन से लड़ भी लू तो मुझे सदा मुस्कुराते हुए ही देखते हैं 
शायद  वो भी मुझे नादाँ समझके यूँ देखते हो ,
उनके होठो की मुस्कुराहटें 
मुझे कहती हैं अरे पगली 
अब तो रोते - रोते सिख ले 
ये सब भ्रम हैं ,
में तेरा हूँ , 
तेरे साथ हूँ
और सदा तेरे साथ रहूंगा |
छोड़ चली आ|
जितना रो सकती हैं रो ले मेरी बाहों में
सुखा दे समन्दर अपनी आँखों का 
और थोड़ी देर मेरी गोद में चेन से सो जा 
और भूल जा इस संसार को |
क्योकि तू मेरे लिए बनी हैं बस 
और तेरे  राम तेरे साथ हैं
पग- पग इस जीवन से
उस जीवन के पार भी
तो चल थाम ले मेरी भक्ति का हाथ ,
में संग रहूंगा सदा ,
मीरा  को दुनिया ने जहर दिया,
तो मेने पहले उसे भोग लगाया 
तुझे नहीं पीने दूंगा 
अब कोई विष प्याला मीरा की तरह
और नहीं देने दूंगा कोई अग्नि परीक्षा |
हां असीम स्नेह से निभाता चलूँगा तेरा साथ 
भूखा हूँ में क्योकि तू भूखी हैं
सोचा हैं कभी इस दुनिया की परवाह में 
नहीं न ,छोड़ कविता , रस ,छंद  ,अलंकार 
पगली ये सब नहीं तेरे बस का,
तू तो  जेसी भी हैं मुझको हैं स्वीकार |
मेरे राम
इसीलिए तो दीवानी हूँ
तुम्हारे नाम की |

अनुभूति

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