शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

मोक्ष

मेरे प्रभु!
जीवन सत्य , नि:श्छल रूप 
बिलकुल प्रकृति  स्वरुप
सरल ,सुदर ,आलोकिक 
क्या कहू ? तुमसे मन की मन की पीर 
सब कुछ तो तुम्हे पता हैं ,क्यों बहे हैं इन आँखों से ये नीर !

तुम्हरा स्नेह ही सहारा हैं जीवन का ,
आज शब्द नहीं ,दर्द फुट पडा हैं जीवन का 

सब कुछ बेजान पडा हैं , जीवन श्मशान बना हैं |
ख़ाक हूँ में ख़ाक में मिल जाने दो बस ये ही कहना बन पडा हैं|

प्रभु!
  क्यों मेरे साथ खड़े हो जीवन जीने की आस जगाए 
  श्मशान में कही फुल खिला करता हैं चाहे कितनी आस लगाये |

  में तो सुखी हूँ तुम्हारे इन श्री चरणों की सेवा में निस दिन .
  पल -पल , तिल -तिल इस सेवा में ,
जो अपने को मिटाने का सुख हैं वो मिटा देगा ,
सारे दुःख  मेरे साथ सब एक दिन |

प्रभु! 
 बस उस अंतिम दिनमेरे सामने ही खड़े रहना
ताकि मेरे तड़प का वो दिन भी देख लो अपनी आँखों से
और मुक्त कर दो मुझे, दे देना मोक्ष मुझे|
क्यों अब नहीं रहना ,कुछ नहीं कहना , सहना |

तुम्हारे श्री चरणों में 
अनुभूति

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