मेरे प्रभु!
जीवन सत्य , नि:श्छल रूप
बिलकुल प्रकृति स्वरुप
सरल ,सुदर ,आलोकिक
सरल ,सुदर ,आलोकिक
क्या कहू ? तुमसे मन की मन की पीर
सब कुछ तो तुम्हे पता हैं ,क्यों बहे हैं इन आँखों से ये नीर !
तुम्हरा स्नेह ही सहारा हैं जीवन का ,
आज शब्द नहीं ,दर्द फुट पडा हैं जीवन का
सब कुछ बेजान पडा हैं , जीवन श्मशान बना हैं |
ख़ाक हूँ में ख़ाक में मिल जाने दो बस ये ही कहना बन पडा हैं|
प्रभु!
क्यों मेरे साथ खड़े हो जीवन जीने की आस जगाए
श्मशान में कही फुल खिला करता हैं चाहे कितनी आस लगाये |
में तो सुखी हूँ तुम्हारे इन श्री चरणों की सेवा में निस दिन .
पल -पल , तिल -तिल इस सेवा में ,
जो अपने को मिटाने का सुख हैं वो मिटा देगा ,
सारे दुःख मेरे साथ सब एक दिन |
प्रभु!
बस उस अंतिम दिनमेरे सामने ही खड़े रहना
ताकि मेरे तड़प का वो दिन भी देख लो अपनी आँखों से
और मुक्त कर दो मुझे, दे देना मोक्ष मुझे|
क्यों अब नहीं रहना ,कुछ नहीं कहना , सहना |
तुम्हारे श्री चरणों में
अनुभूति
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