मात ,पिता, बहन ,भाई
पति सगे सम्बन्धी , समाज,
सबके कलुषित शबदो से विदीर्ण,
मन आ पडा तुम्हारे श्री चरणोंके द्वार
खोजता रहा माँ के आंचल में ममता की छावं ,
पिता से स्नेह और अपनत्व ,अधिकार
भाई और बहन से दुलार ,प्यार
पति से पत्नी होने का सम्मान
घर से बहु होने की मरियादा
जब कुछ न पा सका तो ये मन
पा गया तेरे श्री चरणों की छावं
सब झूठे भ्रम हैं मोह माया के
एक तुझे ही सच्चा पाया मेने इस संसार
अब तक भी आस बंधी थी की पा जाउंगी कही
कोई स्नेह कोई वात्सल्य कोई अधिकार
आस भी छुट गयी हैं आज
और निकल पड़ी हूँ में तेरे श्री चरणों की छाव
और निकल पड़ी हूँ में तेरे श्री चरणों की छाव
बावरी हूँ कन्हियाँ तेरे स्नेह की
कँहा से आन पडा तू ले इतना स्नेह दुलार
मोहित हूँ तेरी सरलता ,सादगी पे
कुछ नहीं कह के भी कर ले तू मुझे इतना दुलार
और में निर्मोही भटक रही
पाने अपनों का लाड दुलार
सोचती हूँ क्या करू ऐसा की बिच्छ जाऊं
तेरे चरणों के द्वार |
शबरी के झूठे बेर खाने वाले
मीरा को विष प्याले से बचाने वाले
पाकर तुझे धन्य हूँ
जग न पाया पा लिया तेरा अद्भुत स्नेह संसार |
ये वचन देती हूँ
कभी न दूंगी अब कोई पीड़ा तुझे मेरे कान्हा
बहाके इन आँखों से अश्रु धार
बहाके इन आँखों से अश्रु धार
में जियूंगी अब अपने लिए
अपने प्रभु के चरणों की सेवा के लिए
कर समर्पित जीवन और ये तुच्छ संसार |
थामे रखना ओ कान्हा मुझे भी
समझ मुरली की झंकार
तेरी मुस्कुराहट की चांदनी में खिल जाती हूँ में
तुझे हँसता देख जी जाती हूँ में
ओ कान्हा बस तारना मुझे यूँ ही तुम
थामे स्नेह , अधिकार और
वात्सल्य का दे सर पर हाथ|
तेरे श्री चरणों में तेरी बावरी अनुभूति
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