सोमवार, 21 मार्च 2011

इन खुली आँखों से सपना



इस नीले आकाश को ,
देखते- देखते ही ,
में खोजती  हूँ अपने ही अंतस में 
तुम्हारे साथ को,
और देखने लगती हूँ 
इन खुली आँखों से सपना |

हां ,एक खुबसूरत सपना ,
तुम्हारे काँधे पर सर रखकर 
भूल जाती हूँ सारी दुनियां 
और तुम मेरे हाथो को थामे 
गुनगुना रहे होते हो ये गीत .

तेरा मेरा साथ रहे ,
तेरा मेरा साथ रहे धूप या छाया ...

1 टिप्पणी:

Girish Kumar Billore ने कहा…

बहुत खूब कल ब्लाग4वार्ता पर शामिल है यह कविता

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................