मेरे माधव !
कभी मैं खिलखिला के मुस्कुरा उठूँ
तेरी बतियों पे ,
तो कभो कही तेरी खामोश
अहसासों की जुबा पे
लड़ती जाऊं
रोती जाऊं और
नीर भरी इन अखियन से
तुझे प्रेम -पाती लिखती जाऊं
जितने मेरे शब्द नहीं ,
उतने ही अंखियन में
सागर भरे
तेरा ही स्नेह सागर को इन अखियन
से बहाती ही जाऊं
तेरी ही तरह विशाल हैं
तेरा ये स्नेह सागर
पल-पल में जितना नीर बहाऊं
उतना ही ये उमडा जाएँ
ह्रदय की पीड को, दे विष प्याला
मैं तेरे क्षणिक स्नेह का
अमृत पाकर में जी जाऊं
तेरे हाथो में हैं
इस छोटी सी माटी कीगुडिया डोर
जो तू खीच ले तो में रो लूँ
और जो तू छोड दें ,मैं हंसती जाऊं ,
मैं एक कठपुतली तेरे हाथों की
जेसे तू चाहेँ ,
मैं जीती जाऊं
मैं तो तुझ संग बंधी हूँ प्रियतम
तुमसे अपने निस्वार्थ प्रीत
निभाती जाऊं
तुम ही कहो सारा संसार
सिर्फ स्वार्थ के लिए साथ करे मेरा
मैं निस्वार्थ ,मिट जाउंगी
मीरा की तरह हर
विष प्याला पी जाउंगी
.दे प्राण में ये प्रीत निभाऊँगी
तुम्हे भी ये अहसास जगा दूंगी
कोई मुझसा भी नहीं मिलेगा
तुझे इस संसार
मेरे माधव !
मेरे कान्हा !
श्री चरणों में तुम्हारी अनुभूति
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें