मेरे राम !
काहे टूटता नहीं,
मेरी आत्मा का विश्वास ,
क्यों मेरी आत्मा में
सत्य का अलख जगाएं हो !
देख चुकी इस
संसार में सत्य का मान
सिवा अपमान और तिरस्कार के कुछ भी नहीं
जानते हो !
इस कलयुग में इस सत्य का मोल
तो फिर क्यों मेरी आत्मा में
ये अलख जगाए हो !
मैं इस संसार की नहीं ,
या ये मेरा ये नहीं
फिर मुझे काहे इस भ्रम में फसायें हो
अगर कही ,
मेरे राम .इस संसार के साक्षी हैं
तो कँहा हैं !
में नहीं जानती ,
इतना सिखा हैं माँ से अपनी
पिता के अडिग सत्य से ,
तुम सत्य में बसा करते हो
निश्चलता में ,बस रहा करते हो
मेरी आत्मा की ये जिद हैं
तुम आना होगा ,
तुम आये थे
अहिल्या के उद्धार को भी .
करने स्वीकार शबरी के स्नेह को भी
मुझे मेरे यथार्थ सत्य का भान करना होगा ,
तुम्हे आना होगा
में जानती हूँ
तेरे ही कदमो की सेवा की प्यास ले आई हैं
मुझे इस दुनिया में दोबारा
संसार के स्वार्थ से परे में हूँ ! तुम्हारी
तुम्हे साक्षी मान छोड़ चुकी हूँ
मिथ्या भ्रमों का ये संसार
मैं जानती हूँ ,
मेरी तपस्या में कमी है
अभी कुछ बाकी ,
लेकिन तुम्हे ,
मेरी आत्मा में बसे
अक्ष्णु विशवास के लिए
अपनी धरती छोड ,
मेरे स्वर्ग में आना होगा
ना ये विनती हैं,
ना ये कोई जिद
ना स्नेह ,ना कोई समर्पण
ना स्वार्थ
ये मेरी आत्मा की अपने राम को
पुकार मात्र हैं ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
इस भोर का
ये अश्रु प्रणाम करो स्वीकार
अपने चरणों में .
अनुभूति
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