सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

में रूठी हूँ तुझसे ही आज


मेरे कृष्णा !
में रूठी हूँ तुझसे ही आज ....
सब कुछ एक ही पल में छीन लिया तुमने मुझसे
मेरी आत्मा ,मेरे शब्द ,मेरे अहसास ,
मेरा स्नेह सागर
मेरी आत्म आनंद अनुभूतियाँ ...............
फिर भी जाने क्यों लगता हैं मुझे
सुन रहे हो मुझे ,देख रहे हो
महसूस कर रहे हो मेरी हर पीड़ा को
और धडक रहे हो मुझमे ही .............
चीर दिया हैं तुमने मेरी आत्मा का अंतस
अब इन आखो से अश्क नहीं ,दर्द फूटता हैं
और पल -पल तुम्हारे कदमो पे गिरता हुआ
तुम्हे पुकारता हैं मेरे माधव ......................
जीवन का कोनसा रूप दिखा रहे हो तुम ,
कोनसी नयी सीख दे रहे हो
मुझे मेरे श्याम ......
मेरे कोस्तुभ धारी रूठी हैं तुमसे आज
तुम्हारी ये बावरी,पुकारती है तुम्हे
चले आओ मेरे माधव ............
अनुभूति




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निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................