रसात्मिका
तेरी पनाहों में जिंदगी दर्द भूल जाती हैं ,
दे जाती हैं कुछ पल अमिट स्मृतियों को
मैं आत्म विभोर हूं .....................
तेरी रहमतों से मेरे माधव !
तेरी इन सुकून भरी स्नेह की चांदनी में
में खिलती हूं जो चाँद खिला हो अमावस
तुम्हारा असीम स्नेह फूटता रहता हैं मेरी रूह से
इस आत्मा से निकले शब्दों से ......................
हां ,इसीलिए तो हूं
और तुम कहते हो मुझे रसात्मिका
मैं हूं !
तुम्हारी रसात्मिका ......................................
श्री चरणों में अनुभूति
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