किसी का स्नेह जीवन में कितना कुछ बदल देता हैं ,सामने घटित देखतीहूँ तो अपने अंतस को या कहूँ अन्दर के इंसान को रोक नहीं पाती ,स्नेह का आलोक कविता बन फुट पड़ता हैं |
वो जीने लगा हैं अब फिर ,
बुझा -बुझा सा एक दीप,
आज f उठा हैं हां ,
अब वो जीने लगा हैं |
लौट आई हैं इस
में "प्रीत " हँसती ,
में "प्रीत " हँसती ,
मुस्कुराहटों की तरह
गुनगुनाती जिन्दगी की ,
अब वो जीने लगा हैं |
गुनगुनाती जिन्दगी की ,
अब वो जीने लगा हैं |
सालो बाद आज उतार फेका
हैं e खामोशी का चोगा
हां ,दिल के सारे दरवाजे खोल
हैं "प्रीत "तुम्हारा स्वागत
हां ,अब वो जीने लगा हैं |
तुमने लौटा दी हैं
एक लाश में जिन्दगी
खामोश लबो पे मुस्कराहट हां ,
हैं e खामोशी का चोगा
हां ,दिल के सारे दरवाजे खोल
हैं "प्रीत "तुम्हारा स्वागत
हां ,अब वो जीने लगा हैं |
तुमने लौटा दी हैं
एक लाश में जिन्दगी
खामोश लबो पे मुस्कराहट हां ,
अब वो जीने लगा हैं |
हां "प्रीत "अब वो जीने लगा हैं |
अनुभूति
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