मेरे कोस्तुभ धारी !
ना कोई सन्देश
ना कोई उम्मीद ,
फिर भी सत्य के विशवास के साथ ,
ये गोरी तोरी ,
फिर भी सत्य के विशवास के साथ ,
ये गोरी तोरी ,
नयी नवेली दुल्हन ,
आस लगाएं बेठी हैं ,
काहे छोड़ गए हो तुम ,
उसे तन्हा पल-पल तडपे ,
अखियन से नीर बहायें ,
बेसुध सी ये गोरी,
प्रियतम की अपने आस लगाये बेठी हैं
करती हैं नयी नवेली प्रियतम का इन्तजार
मेरे कन्हियाँ ! केसे समजाऊं उसे
आस लगाएं बेठी हैं ,
काहे छोड़ गए हो तुम ,
उसे तन्हा पल-पल तडपे ,
अखियन से नीर बहायें ,
बेसुध सी ये गोरी,
प्रियतम की अपने आस लगाये बेठी हैं
करती हैं नयी नवेली प्रियतम का इन्तजार
मेरे कन्हियाँ ! केसे समजाऊं उसे
हाथो की मेहँदी का सूर्ख रंग
खनकती चूडिया ,
पेरो की पायल करती हैं
तेरा इन्तजार कान्हा !
कहती हैं मुझसे लजाते मेरे कान्हा जी आयंगे ,
अपने असीम स्नेह की खनकती पायल
मुझे पहनाएंगे बना
चरण की दासी
सदा के लिए करंगे चरणों में ,
ये जीवन अर्पण स्वीकार,
सुनी हैं आँखे तुम बिन उसकी
, सिमटी -सिमटी हैं कान्हा !
अपने ही घर में
मेरे प्रियतम मोहे लेने आयंगे
ये आस लगाये बेठी हैं ये नयी नवेली
हां करती वो अपने कृष्णा का इन्तजार
ले आत्मा में सत्य का अक्ष्णु विशवास |
"श्री चरणों में अनुभूति"
सदा के लिए करंगे चरणों में ,
ये जीवन अर्पण स्वीकार,
सुनी हैं आँखे तुम बिन उसकी
, सिमटी -सिमटी हैं कान्हा !
अपने ही घर में
मेरे प्रियतम मोहे लेने आयंगे
ये आस लगाये बेठी हैं ये नयी नवेली
हां करती वो अपने कृष्णा का इन्तजार
ले आत्मा में सत्य का अक्ष्णु विशवास |
"श्री चरणों में अनुभूति"
2 टिप्पणियां:
वाह
क्या बात है
जय श्रीकृष्ण। अत्यंत मन भावना काव्य रचना के रस आस्वादन कराने के लिए आभार
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