आज इस प्यासी धरती को भिगोने
भीगा हैं आज धरती का रोम -रोम ,
अंतस तक भीगी हैं धरती आज तेरे असीम स्नेह से
हर डाल पे स्नेह की घटा बरस रही
पर मेरे कृष्णा!
में तो तेरे दर्शन मात्र को ही तरस रही
जी करता हैं गिरिधर कहूँ तुमसे आज .
इन अधरों पे रख छेड़ दो
आज स्नेह भरी मुरलिया
में भी कुछ पल को जी जाऊं
और में पग बाँध पायल झूम जाऊं होके बावरी
डूब जाऊं तुझमे
मेरे कन्हाई !
मन नहीं बस में आज
देख घटा कान्हा !
तेरा ये पैगाम मुझे देता हैं
कहता हैं" ये आदेश हैं मेरा
राधे बांधों पग में पायल आज "
तुम्हरा कान्हा धर लेगा आज अपने अधरों पे
सुरमई मुरली की सरगम
हां कान्हा में महसूस करना चाहती हूँ
बैकुंठ से आती तुम्हारी खुशबु को
में खो जाना चाहती हूँ
तुम्हारी मुरली की धुनों में
बसा लेना चाहती हूँ
अपने अंतस के रोम -रोम में
तुम्हारी खुशबु
छेड़ो आज इस सावन की घटा के साथ
अपनी मुरलिया
की तुहारी राधा आज
इस सावन की बूंदों के पीछे छिपा अपने आंसू
झूम ले आज बाँध पग में पायल |
अनुभूति
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