न किसी वन में
न किसी गीता में ,
न रामायण में
न रामायण में
तुम तो मेरेरोम - रोम में बसे हो भगवान
तुमसा निश्छल कोई नहीं ,
ग्वालिन राधा जप्ती रही तो
तुमने कर दी उस पगली की प्रीत अमर
सोलह हजार एक सो आठ रानियों के,
स्नेह में नहीं साहस के कर सके वो तुलना
उस पगली की निस्वार्थ प्रीत से ,
इसी स्नेह केसम्मान के लिए ,
संसार को तुमने दी अपनी प्रीत
अपना नाम
"राधे - कृष्ण "
और तुझसे बड़ा क्या
कोई निश्चल होगा मेरे भगवान
जिस दिन मिल जाएगा
उस दिन दुनिया से से पहले में मिट जाउंगी
लेते -लेते तुम्हरा नाम
मेरे राधे -कृष्ण
मेरे घनश्याम !
{तुम्हारे श्री चरणों में तुम्हारी दासी अनुभूति }
1 टिप्पणी:
samarpan ko prerit karti paavan bhakti rachna
waah waah...badhaai !
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