अजीब सा इत्तफाक ,
ये मेरे साथ क्यों हुआ जिंदगी ?
बहुत दूर रहने वाला,
एक पल में साँस क्यों हुआ जिंदगी?
जब जिंदगी बन छाया वो मुझपे ,
तो जिंदगी भी बहार बन गयी ,
और आज में मौत की सजा में क्यों हूँ जिंदगी ?
ईमानदारी और वफ़ा की क्या सजा यही है ?
सोचती हूँ मैं भी,
दूसरों की तरह क्यों नहीं बन सकी बेईमान ,
इस जिंदगी में?
अजीब सा इत्तफाक ,
ये मेरे साथ क्यों हुआ जिंदगी ?
बहुत दूर रहने वाला एक आस क्यों हुआ जिंदगी मैं ?
3 टिप्पणियां:
achha laga.
bhavishya me aur bhi umda rachna milegi,
aisi meri shubhkamna !
बहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...
ईमानदारी और वफ़ा की क्या सजा यही हैं ?
सोचती हूँ में भी,
दूसरों की तरह क्यों नहीं बन सकी बईमान
tabhi kuch sukun milta shayad
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