सोमवार, 11 अप्रैल 2011

अजीब सा इत्तफाक

अजीब सा इत्तफाक ,
ये मेरे साथ क्यों हुआ जिंदगी ?
बहुत दूर रहने वाला,
एक पल में साँस क्यों हुआ जिंदगी?

जब जिंदगी बन छाया वो मुझपे ,
तो जिंदगी भी  बहार बन गयी ,
और आज में मौत की सजा में क्यों हूँ जिंदगी ?

ईमानदारी और वफ़ा की क्या सजा यही है ?
सोचती हूँ मैं  भी,
दूसरों की तरह क्यों नहीं बन सकी बेईमान ,
इस जिंदगी में?
अजीब सा इत्तफाक ,
ये मेरे साथ क्यों हुआ जिंदगी ?

बहुत  दूर रहने वाला एक आस क्यों हुआ जिंदगी मैं ?


3 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

achha laga.

bhavishya me aur bhi umda rachna milegi,

aisi meri shubhkamna !

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

ईमानदारी और वफ़ा की क्या सजा यही हैं ?
सोचती हूँ में भी,
दूसरों की तरह क्यों नहीं बन सकी बईमान
tabhi kuch sukun milta shayad

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................