रविवार, 6 मार्च 2011

केसे कहूं तुम पर कविता सागर ?


वो कहते हैं कि तुम मुझपर कविता क्यों नहीं कहती ?

 सोचती हूँ ,
क्या सागर पर भी कोई कविता लिखी जा सकती हैं ?
क्या कहेगी वो चट्टान
जो सदियों से सागर के किनारे आने की बाट जोहती आ  रही है ?

सागर हर दूसरे पल उसे आकर एक नया दिलासा दे जाता है
कि  में तुम्हारे करीब ही हूँ और अभी जाकर ,आता हूँ |

और सागर के एक बार फिर लोट आने की एक मासूम सी चाहत लिए ,
चट्टान फिर वही आ खडी होती है
 फिर एक नए इन्तजार के साथ | 

केसे  कहूं  तुम पर कविता सागर ?
तुम तो समझ ही नहीं  पाते एक मासूम सी चट्टान की भाषा ,

तो कैसे  समझ पाओगे मेरे  इन शब्दों को ?

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

आपकी कविताये पहली बार पढ़ी, सारगर्भित शब्दों का चयन करती है आप, अच्छी कवितायेँ ,शुभकामनाएं

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................