वो कहते हैं कि तुम मुझपर कविता क्यों नहीं कहती ?
सोचती हूँ ,
क्या सागर पर भी कोई कविता लिखी जा सकती हैं ?
क्या कहेगी वो चट्टान
जो सदियों से सागर के किनारे आने की बाट जोहती आ रही है ?
जो सदियों से सागर के किनारे आने की बाट जोहती आ रही है ?
सागर हर दूसरे पल उसे आकर एक नया दिलासा दे जाता है
कि में तुम्हारे करीब ही हूँ और अभी जाकर ,आता हूँ |
कि में तुम्हारे करीब ही हूँ और अभी जाकर ,आता हूँ |
और सागर के एक बार फिर लोट आने की एक मासूम सी चाहत लिए ,
चट्टान फिर वही आ खडी होती है
फिर एक नए इन्तजार के साथ |
चट्टान फिर वही आ खडी होती है
फिर एक नए इन्तजार के साथ |
केसे कहूं तुम पर कविता सागर ?
तुम तो समझ ही नहीं पाते एक मासूम सी चट्टान की भाषा ,
तुम तो समझ ही नहीं पाते एक मासूम सी चट्टान की भाषा ,
तो कैसे समझ पाओगे मेरे इन शब्दों को ?
1 टिप्पणी:
आपकी कविताये पहली बार पढ़ी, सारगर्भित शब्दों का चयन करती है आप, अच्छी कवितायेँ ,शुभकामनाएं
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